Thursday, October 29, 2009

कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ...

कबीर, जिन्हें पढ़ते वक्त खोने का अहसास होता है। आज जब कौन ठगवा नगरिया लूटल हो   पढ़ रहा था, तब मुझे अपने गांव में निरगुण गाने वाले अनहद की याद आ गई। वह इसे जब सस्वर  सुनाता है तो आंखे खुलती नहीं रहती है। वह खासकर कबीर की इस पंक्ति पर जोर देता है-चंदन काठ के बनल खटोला/ता पर दुलहिन सूतल हो।  ...आज आप भी पढिए और मन ही मन गुनगुनाइए भी-

शुक्रिया
गिरीन्द्र


कौन ठगवा नगरिया लूटल हो ।।
चंदन काठ के बनल खटोला

ता पर दुलहिन सूतल हो।


उठो सखी री माँग संवारो

दुलहा मो से रूठल हो।


आये जम राजा पलंग चढ़ि बैठा

नैनन अंसुवा टूटल हो
चार जाने मिल खाट उठाइन

चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो


कहत कबीर सुनो भाई साधो

जग से नाता छूटल हो

2 comments:

Rajeysha said...

चहुँ दिसि धूं धूं उठल हो ...........

हर पल जल रहा है

हर पल राख हो रहें हैं

फि‍र भी इतनी फुर्सत है

कि‍ कमेंट कर रहे हैं
ब्‍लॉग लि‍ख रहे हैं

हम खुद को ही देखें
हम कि‍तना वि‍चि‍त्र दि‍ख रहे हैं।

Sunil abhimanyu said...

Grindra babu bahut badhia hm to waise b aapke anubhav ke fan hain bahut acche