Tuesday, October 27, 2009

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में

इन दिनों कबीर को पढ़ रहा हूं। मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी ..पढ़ते वक्त उनसे नजदीकी बढ़ जाती है। कबीर की वाणी का संग्रह 'बीजक' के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं- रमैनी, सबद और साखी यह पंजाबी, राजस्थानी, खड़ी बोली, अवधी, पूरबी, ब्रजभाषा आदि कई भाषाओं की खिचड़ी है। मूर्त्ति पूजा को लक्ष्य करते हुए उन्होंने कहा था- पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार। वा ते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार। लेकिन अभी पढिए- मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में..

शुक्रिया

गिरीन्द्र



जो सुख पाऊँ राम भजन में


सो सुख नाहिं अमीरी में

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

भला बुरा सब का सुनलीजै

कर गुजरान गरीबी में

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

आखिर यह तन छार मिलेगा

कहाँ फिरत मग़रूरी में

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

प्रेम नगर में रहनी हमारी

साहिब मिले सबूरी में

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

कहत कबीर सुनो भयी साधो

साहिब मिले सबूरी में

मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ॥

3 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

मन लागो मेरो फ्कीरी में। वास्‍तव में फकीरी का आनन्‍द अमीरी में नहीं जाना जा सकता। बढिया पोस्‍ट, बधाई।

आशीष कुमार 'अंशु' said...

बहूत सुन्दर _ यूं ही ब्लॉग के माध्यम से पढ़े हुए को सांझा करते रहे..

Rakesh Kumar Singh said...

फ़कीरी में मन तो रमता ही है. छांट कर ऐसी ही चीजें लाओ. बढिया.