कविता कोष से साभार उनकी एक कविता- अजनबी शहर के..
अजनबी शहर के/में अजनबी रास्ते , मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे ।
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे ।।
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे ।।
ज़हर मिलता रहा, ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
जिंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे ।।
जिंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे ।।
ज़ख्म जब भी कोई ज़हनो दिल पे लगा, तो जिंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार है, चोट खाते रहे, गुनगुनाते रहे ।।
हम भी गोया किसी साज़ के तार है, चोट खाते रहे, गुनगुनाते रहे ।।
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
इतनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे ।।
इतनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे ।।
सख्त हालात के तेज़ तूफानों, गिर गया था हमारा जुनूने वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।।
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।।
3 comments:
शुक्रिया राहीजी के जन्मदिन की याद दिलाने के लिये। उनको हमारी श्रद्धांजलि!
शुक्रिया राहीजी के जन्मदिन की याद दिलाने के लिये
शुक्रिया राहीजी के जन्मदिन की याद दिलाने के लिये। उनको हमारी श्रद्धांजलि!
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