मंगलवार शाम के छह बजे, नोएडा का स्पाइस सिनेमा। पांचवी मंजिल और मशीनी सीढ़ियों के सहारे हम विशाल भारद्वाज की कृति देखने पहुंचे। गीतकार गुलजार के जन्मदिन (18 जुलाई) को सेलिब्रेट करने के लिए हमने विशाल की फिल्म को चुनने का पहले ही मन बना लिया था। इससे पहले कई लोगों से फिल्म की बुराई और अच्छाई ढेर सुनने को मिली, लेकिन हम बेपरवाह कमीने में खोना चाहते थे।
सिनेमा हॉल की गद्देदार सीट पर चिपकने के साथ ही पर्दे पर हजार टके का नोट चार्ली के साथ उड़ता दिखा। हर एक के अंदर छुपे पैसों की चाहत को गहरे रंगों और धुएं के इस्तेमाल से पर्दे पर पेश किया गया। हम उन दृश्यों में खुद को खोए महसूस कर रहे थे कि तभी स को फ सुनने में आया, अजीब लगा लेकिन उतना ही प्यारा भी।
विशाल की अन्य फिल्मों की तरह ही संवाद और गीत हमें खींच रहे थे। कहा जा सकता है कि ‘कमीने’ कसी पटकथा और सटीक संवादों से रची फ़िल्म है। हां, इस कहानी में विशाल की एक अन्य फिल्म ‘मक़बूल’ जितने गहरे अर्थ आपको नहीं मिलेंगे लेकिन मैं एक दर्शक के तौर पर यही कहूंगा कि ‘कमीने’ एक रोचक फ़िल्म है। और यह रोचक फ़िल्म अपना आकर्षण बनाये रखने के लिए हमेशा सही रास्ता चुनती है, कोई ‘फॉर्टकट’(शार्टकट) नहीं।
इससे पहले कि आप कहेंगे कि भई, क्या फिल्म में कोई चीज खटकी नहीं तो बता दूं फिल्म के अंत में गैंगवार को दिखाने में विशाल चुक गए। हालांकि वे अपनी कहानी को आगे बढ़ाने में अक्सर ऐसी ही स्थितियों से दर्शक को बांधने का प्रयास करते हैं लेकिन कमीने में उतना मजा नहीं आया। यह कॉमिक्स की तरह ढिंसूम-ढिसूम टाइप लगा। रवीश ठीक ही कहते हैं- पांच टाइप के गैंग एक छोटी सी गली में आ जाते हैं। छत पर खड़ी पुलिस गैंगवार में शामिल है या एनकांउटर करने आयी है, ये फर्क तुरंत ख़त्म हो जाता है। किसी वीडियो गेम की तरह लास्ट सीन लगा। खिलौने वाली बंदूकें कब हंसे कब रोये समझ में ही नहीं आया।
सिनेमाहॉल में हम गुलजार के जन्मदिन पर उनके गीतो में भी खोना चाहते थे, हम कमीनी चीज को खोजना चाहते थे। हां, हमें निराशा हाथ नहीं लगी। हम गुलजार से मोहब्बत करना सीख गए। पहली बार मोहब्बत की और आखिरी बार भी की। बस मेरी आरज़ू कमीनी, जब ये गाना आया तो बहुत निराश हुआ क्योंकि संगीत के भयानक शोर में गुलजार के शब्द खो चुके थे। हमें अहसास हुआ कि शायद इस गीत में संगीत की चासनी विशाल ने आक्रमक तरीके से मिलाया है।
मुझे यह गाना भी खूब पसंद आया-
ये इश्क नहीं आसां,
अजी एड्स का खतरा है
पतावार पहन जाना,ये आग का दरिया है।
यह एक आक्रामक गाना है, जो हम पर हमला करता है। सुखविंदर और कैलाश की आवाज और ‘फटाक’ हमें फटक से खींच लेती है, आखिर यही तो है टिपिकल विशाल का अंदाज़।
खैर, जाते-जाते मैं तो यही कहूंगा कि कमीने देखिए और कुछ हकला, कुछ तोतलाना सीखें।
शुक्रिया।
जानकारी- मोहल्ला लाइव के अब्राहम हिंदी वाले के अनुसार विशाल के दिमाग में कमीने के नाम से फिल्म बनाने की प्रेरणा ऐसे मिली थी कि जब उन्होंने गुलज़ार की फिल्म इजाज़त देखी थी, तो वे इस शब्द के इस्तेमाल पर चौंके थे। उस फिल्म के एक रोमांटिक सीन में नसीरूद्दीन शाह अपनी प्रेमिका अनुराधा पटेल की ओर देखते हुए धीमे स्वर में कहते हैं, तू बहुत कमीनी है। नसीर के इस संवाद पर विशाल चौंके थे। उन्हें अच्छा भी लगा था। बाद में अपनी दोस्तों को वे इस संबोधन से चौंकाते रहे। यह शब्द विशाल के साथ चिपक-सा गया।
जब फिल्म की योजना बनी, तो विशाल ने सबसे पहले गुलज़ार से पूछा कि फिल्म का नाम कमीने कैसा रहगा? गुलज़ार ने बहुत अच्छा कहा और कुछ दिनों के अंदर गीत भी लिख दिया। विशाल और गुलज़ार की क्रिएटिव संगत का नतीजा हमारे सामने है।
8 comments:
इंटरनेट की दुनिया में इस फिलिम को लेकर भाई लोगों ने इतना किचिर-पिचिर किया है कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी वाली बात कर दूं। देख आता हूं सीधे फिलिम ही कि आए दिन लोगों की किचिर-पिचर पढ़ने से मुक्ति मिल जाएगी। वैसे रवीश सरजी और मिहिर के लिखे पर जो लोगों की जो प्रतिक्रिया मिली है उसे पढ़कर और संभलकर लिखा है आपने। पढ़ने से समझदारी तो आ ही जाती है।..
जिस दिन आप स्प्याईस में यह फिल्म देखने गए. ठीक उसी दिन मैं भी गया था...हाँ..समय अलग था. रविशजी की इस फिल्म पर लिखी टिपण्णी मुझे ज्यादा सटीक लगती है. जो छवि विशाल भरद्वाज की रही है...वैसे में कमीने से निराशा हाथ लगती है. सही मानो में मुझे भी लगता है की यह फिल्म फ और कमीने शब्द को प्रचारित करने के लिए बनायीं गयी है.
फिल्म समीक्षा के क्षेत्र में इन दिनों काफी नया देखने को मिल रहा है। आप भी वैसा ही कर रहे हैं लेकिन इस नए प्रयोग में आप जैस लोग जज्बाती हो जाते हैं। वैसे यह कोई गलत कदम नहीं है।
आपने हटकर समीक्षा लिखी है। फिल्म की कुछ कमियों के साथ आपने अच्छाई भी लिखी है। ऐसे ही लिखते रहें। निखार ऐसे ही आता है।
हाल ही में मिहिर ने भी इस फिल्म के गीतों की समीक्षा लिखी थी, एक अलग अंदाज में।
शुक्रिया
उदय
अच्चा लगा
क्योंकि विशाल की यह फिल्म बहुत लोगों को समझ नहीं आयी है.
बढ़िया है
यह फिल्म हमें भी देखनी है
http://aajavlokan.blogspot.com/
बढ़िया है
यह फिल्म हमें भी देखनी है
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आपको पढ़ने के बाद ख्याल आया कि क्यों न कमीने फिर से देखा जाए। फिर कहता हूं कुछ।
राजीव
Bahut Barhia... Isi Tarah Likhte rahiye
http://hellomithilaa.blogspot.com
Mithilak Gap...Maithili Me
http://mastgaane.blogspot.com
Manpasand Gaane
http://muskuraahat.blogspot.com
Aapke Bheje Photo
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