Saturday, June 06, 2009

पिया तोरा कैसा अभिमान... और फिर किसी मौसम का झोंका था..

चार-पांच दिन पहले की बात है। मयूर विहार में अपने दोस्त के यहां पहुंचा था। टीवी ऑन किया तो रितुपर्णो घोष की अजय देवगन और ऐश्वर्या राय को लेकर बनाई फिल्म रेनकोट शुरु ही हो रही थी।

मैंने अपने यार से कहा, बॉस..बात कल करेंगे अभी मुझे तुम इसमें डूबने दो। मुझे यह फिल्म बेहद पसंद है और इसकी एक खास वजह इसका संगीत भी है.. यू तो रेनकोट फिल्म के सारे गीत खुद रितुपर्णो घोष ने ही लिखे है.. पर इसके एक गाने में गुलज़ार साहब की आवाज़ में उनकी पढ़ी हुई एक नज़्म भी है.. किसी मौसम का झोंका था..


वैसे फिल्म का सबसे प्यारा गीत मुझे पिया तोरा कैसा अभिमान... लगता है, जितने खूबसूरत इसके बोल है उतनी ही मधुरता शुभा मुदगल जी ने इसे गाकर प्रदान की है..

ऋतपर्णो घोष गुलज़ार साहब को 'गुलज़ार भाई' कहते है और उनकी खास फरमाइश पर गुलज़ार साहब ने खुद अपनी लिखी नज़्म को अपनी आवाज़ दी है, आप भी पढ़िए। यकीन है आपने सुना भी होगा।

किसी मौसम का झोंका था,


जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया है


गये सावन में ये दीवारें यूँ सीली नहीं थीं


ना जाने इस दफा क्यूँ इनमे सीलन आ गयी है


दरारें पड़ गयी हैं और सीलन इस तरह बैठी है


जैसे खुश्क रुक्सारों पे गीले आसूं चलते हैं


ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर


ये बारिश गुनगुनाती थी इसी छत की मुंडेरों पर


ये घर कि खिड़कीयों के कांच पर उंगली से लिख जाती थी सन्देशे


देखती रहती है बैठी हुई अब, बंद रोशंदानों के पीछे से


दुपहरें ऐसी लगती हैं, जैसे बिना मोहरों के खाली खाने रखे हैं,


ना कोइ खेलने वाला है बाज़ी, और ना कोई चाल चलता है,


ना दिन होता है अब ना रात होती है,


सभी कुछ रुक गया है,वो क्या मौसम का झोंका था,


जो इस दीवार पर लटकी हुइ तस्वीर तिरछी कर गया है

4 comments:

नीरज गोस्वामी said...

रेनकोट फिल्म देखते समय गुलज़ार साहेब के इस कलाम ने भाव विभोर कर दिया था...कलाकारों के बेमिसाल अभिनय और कुशल निर्देशन के लिए ये फिल्म कभी भी देखी जा सकती है...मुंबई की तड़क भड़क वाली फिल्मों के बीच में इतनी सादी फिल्म को देखना एक रोमांच करी अनुभव है...
नीरज

neha said...

badhiya post...renkot wakai bahut behtarin film hai.

कुश said...

कितना बार सुना है अब तो याद भी नहीं

Yunus Khan said...

बढिया है ।
बारिश के झमाझम दिनों में 'रेनकोट' देखना याद आ गया ।
मुंबई की बारिश । और 'किसी मौसम का झोंका'
ओह ।