Sunday, May 31, 2009

क्या है सपना..आसमां की सैर या जमीं पे रहना..

दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद होस्टल से निकलने की बारी आई तो होस्टल के प्रमुख ने पूछा था- तुम्हारा सपना क्या है..मुझे याद है मैंने तपाक से कहा था गांव में बच्चों को पढ़ाना....। तेजी से बदलती इस दुनिया में मेरे सपने खो गए लेकिन यकीन मानिए मरे नहीं हैं।

यह बात अभी इसी कारण बता रहा हूं क्योंकि कर्नाटक के कूननप्पालू गांव के बच्चे भी हर सप्ताहांत बड़ी बेसब्री से अपने कुछ मेहमान शिक्षकों का इंतजार करते हैं। कमाल की बात यह है कि ये शिक्षक देश में आईटी का प्रमुख केंद्र बन चुके बेंगलुरू से आते हैं और बच्चों को गणित, अंग्रेजी और विज्ञान जैसे प्रमुख विषय पढ़ाते हैं।


कूननप्पालू गांव बेंगलुरू से 120 किलोमीटर की दूरी पर है। इस गांव में एक सरकारी स्कूल है जहां 45 बच्चे पढ़ाई करते हैं। पांचवीं कक्षा तक इस स्कूल में महज एक शिक्षक है। यहां फिर एनजीओ की जरूरत महसूस होती दिखी, (कागजी एनीजओ नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर काम करने वाले एनजीओ) 'समायते फाउंडेशन' के संस्थापक सदस्य अरुण मुने गौड़ा के प्रयास से इस गांव के बच्चों को योग्य शिक्षकों से पढ़ने का मौका मिल रहा है।

यह संगठन बेंगलुरू के कुछ नौजवान आईटी पेशेवरों ने बनाया है जिन्होंने इन बच्चों की मदद का बीड़ा उठाया है। ये पेशेवर इन 45 बच्चों के साथ ही बगल के गांव के एक अन्य स्कूल के 40 बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं। इसकी नींव हासन स्थित मालनद इंजीनियरिंग कॉलेज के छह छात्रों ने रखी थी। हालांकि बाद में ये सभी पेशेवर बेंगलुरू पहुंच गए। आज इस संगठन के 12 सक्रिय सदस्य हैं।

यहां एनजीओ की वकालत नहीं हो रही है, बल्कि कुछ अलग काम करने की बात हो रही है। जीवन के आपाधापी में, अपनी जरूरतों के लिए रेंगते रहने के बीच कुछ ऐसा तो जरूर करना चाहिए, जिससे सुकून मिले...

2 comments:

Udan Tashtari said...

जीवन के आपाधापी में, अपनी जरूरतों के लिए रेंगते रहने के बीच कुछ ऐसा तो जरूर करना चाहिए, जिससे सुकून मिले...

-बिल्कुल सही कहा-वरना तो जिन्दगी अपनी रफ्तार से भाग ही रही है.

'समायते फाउंडेशन'का प्रयास अनुकरणीय एवं सराहनीय है.

sushant jha said...

गुड...मैं सोच रहा हूं कि कुछ इसी तरह का काम बिहार में शुरु किया जाए...हलांकि करनेवाले कर ही रहे हैं...लेकिन इसे और भी फैलाने की जरुरत है। शिक्षा देना एक आंदोलन बन जाना चाहिए...।