चलिए आज अविनाश और बादल की बात करते हैं। बादल धरती को प्रोटेक्शन देता है और बारिश के रूप में एक अहसास, कि आप भींगकर काफी अच्छे लगते हैं। हंसना और रोना और अपनी बातों को चिल्लाकर कहने की आजादी आपको दोस्तों के साथ बारिश में भींगकर आनायास आ जाएगा। ठीक इसी तरह मेरे अविनाश हैं।
बादल बिना बरसाए भी एक अलग तरह का आनंद देता है और अविनाश बिना दिखाई दिए भी मुझे प्यार देते हैं। तमाम व्यस्तताओं के बीच वो खुद को साहित्य व सिनेमा से जोड़े रखते हैं। कई ऐसे वाकये याद आते हैं, जिनमें अविनाश हमें आगे बढने के लिए नए तकरीब सीखाते हैं और हमें वह सूट भी करता है। मसलन अपनी भाषा की बारीकी को समझें और लिखें, ताकि आगे बढ़ने के साथ अपनी भाषा भी आगे बढ़े।
मंडी हाउस पर चाय पीते वो कई ऐसी बातें कह डालते हैं कि कोई भी उसे पसंद कर पाएगा। साहित्य, पत्रकारिता जैसे वृहत क्षेत्रों में हो रहे बदलावों को वो नजदीक से देख रहे हैं और इस बड़ी और जटिल दुनिया में नई चीज जो़ड़ भी रहे हैं।
अविनाश बदलाव के बड़े पेरोकारों में एक हैं। उन्होंने हमेशा बदलाव की वकालत की है और उसमें सफल भी रहे हैं। कभी भी संतुष्ट नहीं दिखने वाले अविनाश की खासियत यही है। हमेशा कुछ नया करना और साहित्य से जुड़े रहना उनकी जिंदगी का हिस्सा है। और एक अजीब चीज जो उनसे हमेशा जुड़ा रहता है वो है विवाद। आप तो जानते ही हैं कि विवाद भी बादल से जुड़ा रहता है, मसलन काले मेघा तो लगे हैं, लेकिन बारिश क्यों नहीं हो रही है। बस यही हैं स्वच्छंद अविनाश।
इसी बीच अविनाश दिल्ली से निकल पड़ते हैं, यहां से दूर .....वे याद आते हैं। (फोन पर बात किए कई दिन हो गए..) मंडी हाउस से लेकर आईटीओ तक की याद ताजा हो जाती है, बस उनकी एक याद से ही। बारिश की बूंदें जब गाड़ी के शीशे पर रहकर कुछ अलग दिखते हैं ठीक वैसे ही वे अब लगते हैं। छूने की कोशिश नहीं भी करो तो भी वह गजब का सुंदर लगता है। अविनाश भी वैसे ही याद आते हैं।
अविनाश क्या आप तक मेरी आवाज पहुंच पा रही है...............
मुझे इस समय मोहन राणा की एक कविता याद आ रही है-
" कई दिन कि याद नहीं कितने बीते
यही सोचते बीते कई दिन तुम्हें याद करते ...’
‘क्या तुम सड़क के उस पार हो,
हैलो तुम्हारी आवाज सुनाई नहीं देती...
क्या तुम मुझे सुन सकती हो...."
(टेलीफोन नाम की कविता की कुछ पंक्तियां)
4 comments:
dekhna svpn dosh na ho jaye sam laingik balatkari
बस, बार-बार एक ही लाइन याद आता है, लगे रहिए आपको बहुत आगे जाना है।
सुनाई तो मुझे भी दी है
असलियत में तुम्हारी आवाज
पर मैं समझ गया कि
जिसको लगा रहे हो आवाज
वो अविनाश मैं नहीं हूं
इसलिए मैंने आगे भेज दी है
वो आवाज।
आवाज आगाज है
वास्तविकता का
सच्चाई का
सपनों का
या धूमिल पड़ती यादों का
पर उन्हें धूमिल मत पड़ने देना
चाहे किसी भी अविनाश से मिलकर
ताजा कर लेना
धू से दूर मिल कर होना सार्थक।
क्या अविनाश आपकी इस चारण कला से प्रसन्न हैं। उनकी कोई बड़ि कृति पढ़वाते तो हमारा भला भी होता। यह भड़ैती क्यों भला?
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