Saturday, February 28, 2009

राजनीति

अमृता प्रीतम की यह कविता आपने पढ़ी है, यदि नहीं तो आज पढ़िए-





सुना है राजनीति एक क्लासिक फिल्म है

हीरो: बहुमुखी प्रतिभा का मालिक

रोज अपना नाम बदलता है

हीरोइन: हकूमत की कुर्सी वही रहती है

ऐक्स्ट्रा: लोकसभा और राजसभा के मैम्बर

फाइनेंसर: दिहाड़ी के मज़दूर,

कामगर और खेतिहर

(फाइनांस करते नहीं,करवाये जाते हैं)

संसद: इनडोर शूटिंग का स्थान

अख़बार: आउटडोर शूटिंग के साधान

यह फिल्म मैंने देखी नहीं

सिर्फ़ सुनी ही है

क्योंकि सैन्सर का कहना है —

'नॉट फॉर अडल्स।'

1 comment:

सुशील छौक्कर said...

हम तो अमृता जी के दीवाने है पर याद नही ये कविता कभी पढी है। पढी भी होगी तो अब फिलहाल याद नहीं। वैसे पढी तो आनंद आ गया। शुक्रिया जी। वैसे लगता है बुखार अब पूरी तरह से ठीक हो गया। वैसे आपने हमारा बुखार उतारने का नुस्खा नही पूछा।