लगभग दो साल पहले पटना मे पवन श्रीवास्तव से मिला था, कवि हैं। उस समय मैंने उनकी एक कविता सुनी , और उसे नोट भी किया था। आज पुराने पन्नों से फिर पवन याद आ गये -
आहटे फिर से आने लगी हैं
कोशिशें सुगबुगाने लगी हैं
कोई आवाज देने लगा है
चुप्पियां गुनगुनाने लगी हैं
कोई हलचल है सागर के तल में
किश्तियां डगमगाने लगी हैं
देखना कोई आंधी उठेगी
चीटिंया घर बनाने लगी हैं।”
4 comments:
सुन्दर भाव वाली रचना, पढ़कर अच्छा लगा
---मेरे पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें । चाँद, बादल और शाम । तकनीक दृष्टा/Tech Prevue । आनंद बक्षी
बहुत सुंदर रचना।
कभी हमसे भी मिल लो तो शायद कविता छाप दो और हम धन्य हो जायें. :)
अच्छी रचना.
वाह...बढ़िया कविता है। बहुत सुंदर... और वैसा ही प्रवाह।
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