इमरोज की कविता-
हर किसी को नहीं सिर्फ़
मन चाहे को ही पूरी औरत मिलती है
कुवांरापन औरत की मर्जी होती है
कुवांरापन जिस्मानी हालत नही ये मन की हालत भी होती है
औरत अपना आप और अपना कुवांरापन
किसी भी सिर्फ़ सोने वाले मर्द को कभी नही देती
अपनी मर्जी से
जिस मर्द के साथ जागकर जीना है
उसको ही वो अपना आप अपना कुवांरापन देती है
सिर्फ़ मन चाहे मर्द को ही
पूरी औरत मिलती है
और किसी को कभी नही
7 comments:
बहुत सही कहा इमरोज़ जी ने ....शुक्रिया इसको यहाँ पढ़वाने का
कहाँ से लाए हो दोस्त ये खजाना। मैंने पहले नही पढा। शायद नया है। वैसे सच कहा हैं। दिल को छू गई ये रचना इमरोज जी की। इन जैसा इंसान मिलना भी बहुत मुशिकल हैं।
बहुत सुंदर. इस रचना के माध्यम से एक बहुत बड़ी सच्चाई कह दी है लेखक ने.
इमरोज़ अपनी ज़िन्दगी मैं इन सब अनुभवों से गुज़रे है. इसलिय यह दर्द उनका रहा है, यह उनकी अपनी आपबीती रही है. अगर आप कविता के संकलन का नाम भी देते तू अच्छा रहता. बहुत बहुत धन्यवाद.
कुवांरापन जिस्मानी हालत नही ये मन की हालत भी होती है. very true.
अनुभव पर अनुभव है ये
यथार्थ का उदभव है ये.
lekhak ne ise apne anubhav ko likha hai..............
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