रवीश कुमार की पोस्ट अक्सर पढ़ता हूं और कभी-कभी भावुक भी हो जाता हूं। उनकी पोस्ट - अंतिम इच्छा का आखिरी साल पढ़ा। इस पोस्ट की एक टिप्पणी है, जिसे पढ़कर मन खो जाता है।
गिरीन्द्र
टिप्पणी है-
'' पिता जब जिंदा होते हैं अपने बेटे के लिये दिन रात काम करते है। इस उम्मीद में कि वो उससे बेहतर बने। गुजर जाते हैं तो उनके सपने बेटे की आँखों में तैरने लगते हैं।
ये रिश्ता ऐसा है जो हर दिन मजबूत से मजबूततर होता जाता है। पिता के नहीं रहने के बाद भी।
पिता होना इक एहसास भी है।पिता को सिर्फ महसूस किया जा सकता है। वो एक पेड की तरह हैं। जिसका साया आपको सुकून देता है। ''
टिप्पणी देने वाले का ब्लॉग है- सबकी कहानी
1 comment:
"अंतिम ईच्छा..." तो बुकमार्क पोस्ट है रविश जी. गजब की लेखनी!!!
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