संदीप कुमार पांडेय ने ख़ास तौर पर इसे भेजा है। संदीप हमारे सहयोगी हैं। किशोर दा को 4 अगस्त को जन्मदिन पर संदीप ने कुछ यूँ याद क्या है।
हिंदी सिनेमा जगत में किशोर कुमार जैसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार कम ही हुए हैं। एक अदाकार, गायक, संगीतकार, निर्माता, निर्देशक, स्क्रीनप्ले लेखक और पटकथा लेखक के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले किशोर दा का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में हुआ था।
किशोर को परिवार ने आभास कुमार गांगुली नाम दिया। उनके बड़े भाई अशोक कुमार पहले ही फिल्म जगत में एक अभिनेता के रूप में अपना मुकाम बना चुके थे। बाद में उनकी मदद से छोटे भाई अनुप कुमार ने भी फिल्मी दुनिया में प्रवेश किया। दोनों भाइयों को फिल्म जगत से जुड़ा देख मंझले आभास की रुचि भी फिल्मों में जागी और वे गायक अभिनेता कुंदन लाल सहगल के जबरदस्त प्रशंसक बन बैठे।
मुंबई आने के बाद उन्होंने अपना नाम बदल कर किशोर रख लिया। अपना फिल्मी करियर शुरू किया सन 1946 में फिल्म 'शिकारी' में अभिनय के साथ, इस फिल्म में अशोक कुमार ने नायक की भूमिका निभाई थी। सन 1948 में संगीतकार खेमचंद प्रकाश ने उन्हें फिल्म 'जिद्दी' में गाने का अवसर दिया। यह मशहूर शायर जज्बी की नज्म थी जिसके बोल थे-'मरने की दुआयें क्यों मांगूं'।
किशोर को एक गायक के रूप में स्थापित करने का श्रेय जाता है जानेमाने संगीतकार सचिनदेव बर्मन को। उन्होंने किशोर को सलाह दी कि वे सहगल की नकल करना छोड़कर अपनी खुद की शैली विकसित करें। किशोर ने उनकी बात गांठ बांध ली और अपनी एक अलग गायन शैली विकसित की जिसे फिल्म जगत में 'योडली-योडली' के नाम से जाना गया।
किशोर कुमार के बारे में एक साक्षात्कार में अशोक कुमार ने एक रोचक वाकया बताया था। उन्होंने बताया कि बचपन में किशोर बहुत बेसुरे थे। एक बार मां द्वारा की गई जबरदस्त पिटाई के बाद नन्हे किशोर इतना रोए-इतना रोए कि उनकी आवाज ही बदल गई।
परदे और पाश्र्व गायन को लगातार विविधता पूर्ण प्रस्तुतियों से गुलजार करने वाले किशोर का व्यक्तिगत जीवन भी विविधताओं से परिपूर्ण था। उन्होंने चार शादियां कीं। उनका पहला विवाह रोमा देवी से सन 1950 में हुआ जिनके पुत्र अमित कुमार जाने माने पाश्र्व गायक हैं।
उनका दूसरा विवाह हिंदी सिनेमा की वीनस कही जाने वाली अभिनेत्री मधुबाला के साथ हुआ। यह विवाह नौ वर्ष तक चला और सन 1969 में मधुबाला की कैंसर से हुई मौत के बाद ही उनका साथ छूटा। किशोर की तीसरी शादी अभिनेत्री योगिता बाली से हुई लेकिन दो साल के भीतर उनका तलाक हो गया। उन्होंने अंतिम बार सन 1980 में लीना चंदावरकर से विवाह किया और किशोर की मौत तक उनका रिश्ता कायम रहा।
किशोर कुमार का शुरुआती करियर एक अभिनेता के रूप में आगे बढ़ा और आशा, चलती का नाम गाड़ी, झुमरू, हाफ टिकट और पड़ोसन आदि फिल्मों के साथ उन्होंने एक हास्य अभिनेता के रूप में खुद को स्थापित किया। इस बीच उन्होंने गायक के रूप में कुछ बेहतरीन गीत गाए लेकिन उनकी मुख्य पहचान एक अभिनेता की ही रही।
सन 1964 में उन्होंने एक अत्यंत गंभीर फिल्म 'दूर गगन की छांव में' का निर्माण किया। इसमें भी उन्होंने निर्देशक, संगीतकार, पटकथा लेखक और मुख्य अभिनेता के रूप में काम किया। यह फिल्म एक पिता और उसके गूंगे बहरे बेटे के आपसी संबंधों पर आधारित थी। फिल्म में उनके बेटे की भूमिका उनके वास्तविक जीवन के पुत्र अमित कुमार ने निभाई।
सन 1969 में आई फिल्म 'आराधना' से पहले उनकी पहचान अभिनेता के रूप में ज्यादा थी और वे अपनी आवाज ज्यादातर अपने करीबी मित्र देवानंद की फिल्मों में देते थे लेकिन आराधना ने उन्हें एक गायक के रूप में सितार हैसियत प्रदान की। 'रूप तेरा मस्ताना' और 'मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू' गीत हिंदुस्तान के घर घर में गूंज उठे।
इसके बाद किशोर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और सन 1987 में अपनी मौत के पहले तक उन्होंने सर्वश्रेष्ठ पाश्र्वगायक के आठ फिल्म फेयर पुरस्कार जीते। उन्होंने सन 1982 से 85 तक लगातार चार बार यह खिताब जीता।
किशोर आजीवन फिल्म इंडस्ट्री में अपनी कंजूसी के रोचक किस्सों के लिए जाने जाते रहे। कहा जाता है कि वे तब तक गाने के लिए तैयार नहीं होते थे जब तक कि उनका सचिव उन्हें बता नहीं देता था कि गाने का पूर्व भुगतान हो गया है। एक बार वे फिल्म के सेट पर आधे मेकअप के साथ जा पहुंचे। उनका तर्क था कि आधे भुगतान पर वे आधे मेकअप के साथ ही रोल करेंगे। शायद यह भी उस अद्भुत कलाकार के विविध रुपों में से ही एक था।
हिंदी सिने जगत को अनेक गायक मिले, कई ने अपना मुकाम बनाया लेकिन किशोर जैसा विविध क्षमताओं वाला कलाकार आज तक पैदा नहीं हुआ। बिना मौसिकी की तालीम के जिस तरह उन्होंने कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच खुद को स्थापित किया वह अन्यतम है।
चलते चलते -
किशोर को इस बात से सख्त ऐतराज था कि कोई उनकी गायन शैली की नकल करे लेकिन उनकी मौत के इतने वर्ष बाद अनेक कलाकार केवल उनके गीतों की नकल करके अपना पेट पाल रहे हैं।
किशोर को इस बात से सख्त ऐतराज था कि कोई उनकी गायन शैली की नकल करे लेकिन उनकी मौत के इतने वर्ष बाद अनेक कलाकार केवल उनके गीतों की नकल करके अपना पेट पाल रहे हैं।
3 comments:
बढि़याँ,
मधुबाला साथ छोड़ना ठीक नही था ।
बढि़याँ,
मधुबाला साथ छोड़ना ठीक नही था ।
अच्छी जानकारी के साथ एक कलाकार को याद करना अच्छा लगा। अगर कोई गीत भी जोड़ देते तो पोस्ट को चार चाँद लग जाते। शुक्रिया।
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