तलत अज़ीज़ साहेब ने इसे आवाज़ दीं है, अभी शब्दों मे ही डूब कर आनंद ले। वैसे गीतकार हैं विनोद पांडे ।
आवारगी हमारी प्यारि-सी थी कभी जो
वही आज हमको रुलाने लगी है
जो भरती थी दिल में तरंगे हमेशा
वही आज दिल को जलाने लगी है
आवारगी हमारी
न कोई ग़म न गिला न कोई शुगह क निशाँ
पायी थी हर खुशी हर सुक़ूँ हमको था
नग़मे थे, बहारों के तरन्नुम हर कहीं
फिर भी क्यों हम भटका किये
यह तू ही बता, आवारगी, आवारगी
आवारगी हमारी
खामोशियाँ हैं हर तरफ़, तन्हाइयाँ हैं हर तरफ़
यादों के भँवर से अब कैसे निकलें
साथी न रहा कोई न कोई हमसफ़र
ज़िंदगी के सफ़ें पर लिखने को
है अब तो बस आवारगी, आवारगी
आवारगी हमारी ...
1 comment:
Wahi aaj dil ko jalane lagi hai
ajab zaika hai khushi ka v gam ka
kabhi ye kabhi vo bulaane lagi hai.
bahut hi achi lagi yeh rachna.
daad ke saath
Devi Nangrani
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