Thursday, September 13, 2007

कल की बात ........राम सेतु या बंद...बंद...


कल का दिन शायद आपको याद रहेगा.... राम के नाम पर एक बार फिर सड़कों पर लोग उतरे , लम्बा जाम.... लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा , कल से आज सुबह तक जिस से बात या ऑनलाइन चैट हो रही है सब बस यही बोल रहे हैं कि......."यार मैं तो कल बुरी तरह फँस गया था..."। एक दोस्त बताती हैं कि मयूर विहार से सफदरजंग आने मे २ घंटे लग गए.....

आख़िर इस बंदी का मतलब क्या है....मेरे एक मित्र का मानना है कि यह वोट का मामला है बस......

अभी बीबीसी हिंदी सेवा का चक्कर लगा रहा था तो यह आलेख हाथ आया, इसे देखने के बाद मैं ने चाहा कि इसे अनुभव पे लगा दूँ...

आप भी पढ़ें.........................

साभार बीबीसी हिंदी सेवा


'सेतु होने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं'


भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि 'राम-सेतु' के ऐतिहासिक और पुरातात्विक अवशेष होने के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं.
कोर्ट को सौंपे गए अपने हलफ़नामे में एएसआई ने कहा है कि 'एडम्स ब्रिज' के नाम से प्रचलित इस कथित सेतु को अब तक पुरातात्विक अध्ययन के योग्य भी नहीं माना गया है.
उल्लेखनीय है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री और जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 'सेतु' को तोड़ने पर रोक लगा दी थी और एएसआई को इस बारे में जवाब पेश करने को कहा था.
एएसआई के निदेशक (स्मारक) सी. दोरजी की ओर से दायर किए गए शपथ पत्र में कहा गया है कि 'एडम्स ब्रिज' को लेकर ऐसे कोई प्रमाण कभी नहीं मिले जिससे एएसआई को इसका सर्वेक्षण करने की ज़रुरत महसूस हुई हो.
इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को होनी है.
मिथक कथा
एएसआई ने तीस पृष्ठों के अपने जवाब में कहा है कि रामायण एक मिथकीय कथा है जिसका आधार वाल्मिकी रामायण और रामचरित मानस है.
एएसआई ने कहा है, "ऐसा कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है जिससे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रुप से इस कथा के प्रामाणिक होने और इस कथा के पात्रों के होने का प्रमाण मिलता हो."
इसी रामायण कथा को आधार बनाकर हिंदू संगठन कह रहे हैं कि 'एडम्स ब्रिज' दरअसल रामसेतु है और इसका निर्माण भगवान राम ने वानरों की मदद से किया था.
भारत सरकार ने यहाँ सेतु समुद्रम नाम की एक परियोजना शुरु की है जिसके तहत भारत और श्रीलंका के बीच जहाज़ों के आने जाने के लिए एक रास्ता बनाया जाना है.
इस परियोजना के पूरा होने के बाद भारत के पूर्वी भाग से पश्चिमी भाग तक जाने के लिए जहाज़ों को श्रीलंका का चक्कर नहीं काटना पड़ेगा.
सरकार का कहना है कि इससे क्षेत्र में व्यापार को बढ़ावा मिलेगा और आवागमन सुलभ हो सकेगा.

6 comments:

संजीव कुमार सिन्‍हा said...

गिरिन्द्रजी, आपके ब्लॉग को मैंने खंगाल कर देखा हैं. आए दिन कम्युनिस्टों के द्वारा बिन बात के बंद का नाटक होता रहता हैं तब तो आपने इस पर कुछ नहीं लिखा.

आपने लिखा हैं कि-
राम के नाम पर एक बार फिर सड़कों पर लोग उतरे...

आख़िर इस बंदी का मतलब क्या है....मेरे एक मित्र का मानना है कि यह वोट का मामला है बस......

कृपया कर हर आन्दोलन को वोट के चश्में से न देखें. अजीब विडम्बना हैं कि हमारे राष्ट्रीय नायकों के लिए कुछ करना भी गुनाह हो गया हैं. लाखों वर्ष पुराने राम सेतु पर हथौड़ा चलाया जा रहा हैं. वहीं कुतुबमिनार की रक्षा के लिए मेट्रो का रुट बदला जा रहा हैं. ताजमहल पर धब्बा न आयें इसलिए कारखानों को हटाया जा रहा हैं. हिंदू प्रतीकों पर प्रहार हो रहा हैं और आप राम सेतु की रक्षा के लिए आयोजित बंद पर यह दृष्टिकोण रखते हैं.

ऋतेश पाठक said...

वैज्ञानिक प्रमाण होने या न होने का मतलब यह नहीं होता कि किसी आस्था के प्रतीक को यूं ही खंडित कर दिया. हमारी सांस्कृतिक पहचान के दुश्मन बने लोग कह रहे हैं कि 'राम-सेतु' के ऐतिहासिक और पुरातात्विक अवशेष होने के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं. कहा गया कि यह एक प्राकृतिक संरचना है.
आप ही बतायें प्राकृतिक रूप से बनने वाले बाबा बर्फानी की मूर्ति की पूजा हम अमरनाथ में करते हैं या नहीं. नदियों, पहाडों और पेडों को पूजने की हमारी संस्कृति रही है. जिस किसी संरचना या स्थान की पूजा हम सदियों से करते आ रहे हैं. उसे ध्वस्त करने का किसी को अधिकार नहीं है.
एएसआई ने तो रामायण के पात्रों के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लगा दिया. तो क्या भगवान राम पर से हमारी आस्था समाप्त हो जाएगी? आप बीबीसी की यह रिपोर्ट देखते हैं तो कृपया दैनिक जागरण की रिपोर्ट (http://ind.jagran.com/news/details.aspx?id=3730196) भी देखें जिसमें बताया गया है कि इसी राम-सेतु की वजह से केरल तक सुनामी कि लहरें पहुंच नहीं पायी थी.
भारत का कानून भी कहता है कि किसी धार्मिक महत्व के स्थान पर पत्थर तक फेंकना दंडनीय अपराध है. न विश्वास हो तो किसी मस्जिद या चर्च की ओर ऐसा कर के देखें. फिर रामसेतु को मशीनों से तोडने वालों के खिलाफ आंदोलन क्यों न चलाया जाए.

ऋतेश पाठक said...

लीजिए अब सोनिया जी ने भी एएसआई का हलफनामा वापस मांगने की मांग कर दी.

Sanjeet Tripathi said...

भाई मेरे, चाहे वो "राम" हो या "अली" हो या फ़िर हो "वाम-प्रणेता", ये सब तो कभी "बंद" का समर्थन नही करते क्योंकि परेशानी होती है आम आदमी को, दिहाड़ी वालों को!!

ऐसे "राम", "अली" और "वाम-प्रणेता" अगर बंद कराके परेशानियां बढ़ाते रहे तो फ़िर इनके होने न होने का अर्थ ही क्या!

ऋतेश पाठक said...

दुर्भाग्य तो यह है कि इतना होने पर भी बंद कराना पड रहा है. यह आंदोलन तो स्वतः स्फूर्त होना चाहिए था.

सफ़र said...
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