Sunday, August 19, 2007

हिन्दू मुस्लिम दंगा.....और रोज जुतम-जूती, लत्तम-लत्ती से दो अलग-अलग कविताऐं

तरूण कुमार 'तरूण' एक बार फिर अनुभव में हाजिर हैं। वादे के मुताबिक वे अब अपनी कविताऐं यहां देते रहेंगे। आज उनकी दो अलग-अलग मुड की कविता हाजिर है।
तो , पढ़ें, और अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें अवगत कराऐं।


हिन्दू-मुस्लिम दंगा
गलतफहमी में दोनों कौमें गिरगिट से ले बैठी पंगा
हिन्दू ने समझा गिरगिट मुसलमां
मुस्लिम ने समझा गिरगिट काफिर
इस खबर से नेताओं का माथा गया फिर
तुरंत जेड श्रेणी का प्रोटेक्शन गिरगिट को मिला
सारा फोर्स प्रोटेक्शन में पिला
सुबह खबर आयी-
नेता गिरगिट भाई-भाई
आखिर रंग बदलने वाले इन जीवों की एक हीं तो है माई........
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रोज जुतम-जूती, लत्तम-लत्ती से
जनता की नींद हुई हराम
प्रतिक्रिया स्वरुप उन्होंने,
संसद भवन को घेर लिया सरेआम.
एक विचित्र मांग-
उच्च सदन, निम्न सदन और स्वयं नेता सदन,
सार्वजनिक जगहों से हों दूर
सबसे उपयुक्त स्थल होगा-
कुरूक्षेत्र, पानीपत, प्लासी और हस्तिनापुर
आपकी लड़ाई और सिर-फुटौव्वल से,
भीम, अर्जुन,अब्दाली और अंग्रेजों की शान रहेगी,
जनता शांति से वोट दोने के लिए
दो-चार साल ज्यादा जिएगी...................

2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया कटाक्ष किया है. कविता सफल रही. तरुण जी को बधाई और इसे प्रस्तुत करने हेतु आपको बधाई.

Anonymous said...

नेताओं व राजनेताओं के स्वरुप एवं चरित्र का बड़ा ही मार्मिक व्यंग्यात्मक चित्रण है... बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर....तरुण जी को धन्यवाद ।