Tuesday, May 01, 2007

मजदूर दिवस पर


एक मेल आया ..साथ में कविता भी, बेहद सच्ची कविता.आऐं मेरे संग आप भी इसे पढे...

मजदूर दिवस पर .



हर बार और बार-बार
धार कुंद कर देने से
कुल्हाडी का लोहा
मिट्टी नहीं हो जायेगा
इसलिये
थककर या हारकर
सिर थामना या पलों को यूँ ही
भागने देना,
वाहियात है..

जिन्होंने भोथरा किया है
हर बार और बार-बार
कुल्हाडी और कुदाल के लोहे को..
खुद को उगाने के लिये,
लहलहाने के लिये.

इसीलिये जरुरी है
खूब पैना करना और माँजना
अपनी धार को,
उनकी जडों को ही
काट देने के लिये,
खोद देने के लिये..

1 comment:

Anonymous said...

इसीलिये जरुरी है
खूब पैना करना और माँजना

कविता विचारोत्तेजक है. किंतु हो क्या रहा है? पत्रकार किस श्रेणी में आ रहे हैं? श्रमजीवी या बुद्धिजीवी? किया क्या जा रहा है संगठन के लिए?