गुरुकांत देशाई को सिनेमा घर में देखकर मज़ा आ गया, ठीक एक साल पहले रंग दे बसंती देखकर इतना ही मज़ा आया था. सिनेमायी दुनिया फिल्मो को लेकर मैं कुछ ज्यादा ही उत्सुक रहता हुं. दर असल फ्राइडे फेक्टर मुझ पर पहले से ही हावी रहा है.
मणीरत्नम कभी भी लोगो को निराश नही करते है. हर बार उनकी फिल्म कुछ न कुछ खलबली मचाती ही आयी है. गुरु भी कुछ ऐसा ही करेगा, ऐसा फिल्मी-पंडित लोग कह रहे है. फिल्म की कहानी में दम है, संगीत खुबसुरत है....और बोल के क्या कहने, जब गुलज़ार की कलम गीतो को बोल देती है तो गजब ढहता ही है. बेस्वादी रतिया हो या फिर ओ-गुरु सब एक से बढकर एक्. कहानी मोटीवेट करती है. आपको सपने देखने के लिए कहती है. शायद आगे बढने के लिए जो पापड बेलने पड्ते है वह सबकुछ गुरु मे आपको थोक के भाव मिलेगा. आगे बढने के लिए जो तीकड्म आपको बनाने होते है वह भी गुरु आपको सिखाता नजर आता है. सबसे बडी बात -अपने छोटे सरकार अब राह पकड चुके है,बेहतरीन अदाकारी है उनका, मुंह से अनायस ही निकल पड्ता है-वाह गुरु. ऐर्श्वया राय भी काफी जंच रही है. साडी के आउट फिट मे तो वह गजब की लग रही है.फिल्म का फ्लो भी बांधता नजर आ रहा है.
आर्ट और कर्मशियल का जबरदस्त तड्का मणी भाई ने लगाया है.फिल्म को जरुर देखना चाहिए, अमिताभ बच्चन की पुरी परछाई अभिषेक मे आपको देखने को मिलेगी. मिथुन का भी किरदार भाडी भरकम है.
आप गुरु को देखे और आगे बढने का फार्मुला तैयार करे.....
8 comments:
बहुत ही सही लिखा आपने।
यंहा भी देखें
http://aaina2.wordpress.com/2007/01/13/guru-2/
achachha likha hai. film ko dekhane ke baad pata chalega ki dil ye kahata hai ki nhi ki maan gaye guru.
अब तो देखनी ही पड़ेगी
पहले तो मै Blog के रंग रौगन पर एवं उपर
लिखी शायरी पर कहता हूँ "मान गये गुरु...."!
मुझे भी गुरु बहुत अच्छी लगी...संधर्षशील लोगों
के लिये तो यह एक Vitamins Pills है।
बहुत बढ़िया.
Ab to dkehni hi padegi bhai...par kyaa karen ticket nahi mil raha yahan...sab housefull...
अब तो मैं चिट्ठाकारों के फिल्मी विश्लेषण पर ही ज्यादा भरोसा करता हूँ। आप कह रहे हैं तो देखेंगे।
सुंदर विश्लेषण । अच्छी जानकारी ।
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