Wednesday, January 10, 2007

अयोध्या गाथा.......

दिल्ली की शाम के बारे में क्या कहा जाए खासकर ऐसे मुख से जिसने तंग सड्को पर धुल को उड्ते देखा है,जिसने सुरज के अस्त होते ही लालटेन की रोशनी से रात को निहारा है.उसके लिए तो दिल्ली की शाम सचमुच मर मिट्नेवाली होती है.
लेकिन यहा की शाम मे भी वह कभी_कभार अपने शहर की परछाई को देखता है, यह अलग बात है कि वह यह सबकुछ पर्दे पर देखता है. कुछ ऐसा ही देखने मिला इंडिया हैबिटेट के गुलमोहर हाल में.
युवा डाक्युमेंट्री फिल्ममेकर वाणी की फिल्म अयोध्या गाथा में अयोध्या की गलियों को काफी सहजता से पेश किया गया.
आप या हम जिस अयोध्या कि खबरिया जनाबों के द्वारा देखते या पढते है ठीक विपरीत उसके वाणी ने दिखया. हां यह अलग बात है कि एनडीटीवीवाले ऐसी सच्चाई को दिखाते आये है.मंदिर्-मस्जिद की राजनीति मे फंसीअयोध्या के बासिन्दे को वाणी ने बोलने का मौका दिया...तो सब् गुबार निकल पडे. मेले अट्खेलियां ..रामलला के दर्शन ....मस्जिद के अजान के बीच में भी वहां अब सियासत की बु आ रही. अब गलियो को देखकर कोई यह नही कह सकता है कि
तुम्हारे शहर का मौसम बडा सुहाना लगे...
इक शाम चुडा लू गर बुरा न लगे..
पुलिस चौकी मे तब्दील हो चुकी अयोध्या के लोग अब परेशान नजर आते हैं. वाणी ने सबकुछ सपाट ढंग से पर्दे पर उतार डाला. वहां के लोगो की दास्तां सुनकर जहन में कुछ्-कुछ होने लगा.फुटेज और प्रतिक्रिया गजब के नजर आयी. शायद यही है अयोध्या गाथा. अपने एक दोस्त की जुबां पेश करुं तो इन सियासती लोगों की बत कह सकुं-
गंगा बोली मै सबसे बडी,

क्यो कि हर कोई मुझसे निकला.

शिव बोले मै सबसे बडा,

क्यो कि मेरी जटा से तु निकली.

हिमालय बोला मै सबसे बडा,

क्योकि मेरेपास तु ठहरा...

हनुमान बोले मै सबसे बडा ,

क्यो कि मै ने तुझे अपने हथेलीपर उठाया

संघ के लोग बोले मै ही सबसे बडा,,,

आखिर मेरी जेब मे तु सब..
अयोध्या के संग यही कु्छ हो रहा है, मंदर मस्जिद के बीच मे अपनी अयोध्या.......
आखिर मस्जिद् तो बना दी
शब भर मे इमां की हरारत वालो ने
मन अपना पुराना
पापी ठहरा बरसो मे नमाज़ी बन न सका...

2 comments:

Anonymous said...

hi,abhi laga ki koyi Journalist ki jabani pad raha hun.good work,are hame to wo shamm kaa har manjar yaad aata hai jab chaupaalo par guleriyaan khela karte the...

Anonymous said...

बहुत सदा हुआ लेख.