


सामुहिक हिंसा पर कविताऐं पढने को मुझे बहुत कम मिली, लेकिन अटलबिहारीवाजपेयी की एक कविता मेरे जेहन मे है...टाइटल है-हिरोशिमा की पीडा....
किसी रात को मेरी नींद अचानक उचट जाती है,आँख खुल जाती है,
मैं सोचने लगता हुँ किजिन वैज्ञानिकों ने अणु अस्त्रों का आविष्कार किया था
वे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण नरसंहार के समाचार सुनकर रात को सोए कैसे होगें?
दांत में फंसा तिनका,आंख की किरकिरीपांव में चुभा कांटा,मन का चेन उडा देते हैं.
सगे-संबंधी की मौत ,किसी प्रिय का न रहना,
परिचित का उठ जाना..यहाँ तक कि पालतू पशु का भी बिछोह ........
करवटें बदलत रात गुजर जाती है,
किन्तु जिनके आविष्कार से वह अंतिम अस्त्र बना
जिसने छ्;अगस्त १९४५ की कालरात्रि को ,
मौत का तांडाव कर दो लाख से अधिक लोगों की बलि ले ली
हजारों को जीओअन भर के लिए अपाहिज कर दिया,
क्या उन्हें एक क्षण के लिए सही ,यह अनुभूति हुई कि उनके हाथों जो कुछ
हुआ अच्छा नहीं हुआ...?
2 comments:
वाक़ई बहुत मार्मिक कविता है।
गिरिंद्रजी मुझे भी यह कविता बहुत अच्छी लगी
वाजपेयीजी वाकई मर्मस्पर्शी बात कह जाते हैं अपनी कविताओं में
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