Friday, May 19, 2006

meraa gaawn

आजकल गाँवो मे एक अजीब तरह का चलन सामने आया है.ऐसा नही की यह पहले नहीं था,परन्तु जिस रफ्तार से यह नया बद्लाव आया है वह काबिले-तारीफ है.असल मैं बात कर रहा हुँ-सूचना क्रान्ति की.पुरनिया जिले के एक गाँव चनका मे मैं ने जो कुछ देखा वह एक अलग ही अनुभव था मेरे लिए...इस गाँव में परचुन की एक ही दुकान है,पर सी.डी की ५ दुकाने हैं! किराए पर टी.वी.आदि आराम से मिल जाते हैं. यह वही गाँव है जहाँ पहले संतोष रेडियो की ही केवल धूम थी..और फिर लाउड स्पीकर की..

फणीश्वर नाथ रेणु की इस कथा स्थली में तेज़ी से बद्लाव आ रहे हैं..जो सकारात्मक ही हैं.पलायन की तेज आँधी मे कोशी का यह इलाका भी "दिल्ली-पंजाब "का रुख किया है.हर गाँव से नौगजवान गायब है...दुर्गा पुजा या फिर छ्ठ मे ये कमाउ पुत आते हैं..तब साथ मे लाते हैं "तकनीकी दुनिया के नए-नए अस्त्र..." मसलन मोबाइल , सी. डी. आदि.हर टोले मे दो या तीन मोबाईल है .."एयरटेल का लाईफ टाइम"वाल अस्त्र यहाँ तक पहुंच चुका है.

ये है एक बद्लते गाँव की अलग तस्वीर !

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