Monday, May 22, 2006

aadeewaasi tole kee kahanee


दुनिया की "दुनियादारी" से कोसों दुर है यह "संथाली टोला" !संथाली टोला मतलब आदिवासी बस्ती. पुरनिया जिला के श्रीनगर प्रखंड से मात्र ५ कि.मी. की दुरी पर है यह बस्ती.टेलिफोन बुथो के अध्ययन के दौरान जब मैं यहाँ पहुंचा तो पता चला कि यहाँ से कुछ ही दुरी पर एक संथाली टोला है...फिर क्या, चल पङा मै देखने "संथाली टोला"..

समय चाहे कितना भी आगे बढ गया हो,पर इस टोले की जीवन-शैली आज भी वही पुरानी है..........जंगली जानवरों का शिकार करना, जंगली कुत्तों से रखवाली करवाना..,देशी शराब का जम कर भोग करना...!यहां जिन्दगी बस एक हीं गति मे चलती है.पारम्परिक हथियार -"तीर्-धनुष्" यहाँ आज भी आपको अपना करतब करते दिखाई देगें.
आंगनों से गीतो की मधुर आवाजें(संथाली लोकगीत्) आपको बरबरस अपनी ओर खिंच लेंगे.यहाँ के लोगों का पहनावा भी कुछ खास नहीं बदला है...मर्द लुंगी पहनते और लपेटते हैं तो औरतें लाल्-हरी बार्डर वाली सफेद साङी लपेटे रहती है..काले-काले चेहरों में चमचमाते दाँत गजब की लगती है..............

घनी आबादी वाले इस टोले का हर घर कला का नायाब नमुना है..मिट्टी के बने घर और उसमे फूल्-पत्तियों की कारीगरी आपको बस यहीं मिलेगी..जी हां सबकुछ मिट्टी के...मै ये सब देख हीं रहा था कि युवकों की एक टोली एक जानवर को दो बाँसों के बीच लट्काए आ गए उन्हीं मे से एक से मैने पुछा "क्या है ये"? तो तीतर मांझी ने कहा-"ई हट्टा (जानवर्)है,बेंत के जंगल मे छुपा रहता है,इसको तीर से मारे हैं..बडा है,शाम में इसी का खाना होगा और साथ में होगा एकदम मस्त देशी शराब...!"

ये लोग तो अपनी धुन में मस्त थे,मैं थोङा आगे बढा, टोले के प्रमुख (मरङ)हरदेव मांझी से मिलने.उम्र ७० साल पर अभी भी एकदम मस्त्....पर वह मुझ से खुलकर कुछ नहीं बोले..पता नहीं क्यों...................

इस टोले की एक अलग हीं दुनिया है..बदलाव का एकमात्र निशान -शंकुल मांझी का मोटर साईकल्! बगल के गाँव के एक बडे किसान के बङे भुखंड पर ये लोग खेती करते हैं...सब मिलकर !कुछ पल में जैसे खो गया,कि शंकुल मांझी गाँज़ा फुंकते मेरे आगे आ गया..मुस्कुराता चेहरा मानो कह रहा हो-------
----------"हर फिक्र को धुऐं में उङाता चला गया
ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया...."

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