Friday, May 19, 2006

ग़ावों की कहानी

गाँवो के बुथो की चलती तो भाई कमाल की होती है.शहर मे तो आपको अनेक बूथ मिल जाते है गपियाने को...पर गाँवो मे तो गिनती के बुथ होते है.ऐसा ही कुछ देखने को मिला श्रीनगर मे.जी हाँ-बिहार के पुरनीया ज़िले के गाँव् श्रीनगर मे.

अरे ये तो प्रखण्ड है,इसलिय यहाँ ७ बुथ है..पर बगल के गाँव खुट्टीधुनौली मे तो एक ही की चलती है..अनवर साहब् की. एकमात्र सम्वदीया.
यहाँ तो कभी-कभी लाईन लगी रहती है..लोगो की.बतीयाने के लिए.एक सुबह मै यहाँ पहुँचा तो नज़ारा काफी चटकदार था.चार आदमी आपस मे झगड रहे थे ..मंगल कह रहा था-"पहिले हम आएल छीए,फोन हम करिबे..."तो रामचरन कहता है.."कनी त उम्रो क ख्याल कर मंगल्.."
दर असल सभी को जल्दी है बात करने को..इस प्रकार के देशी रुप आप शहरों मे नहीं देख पायेंगे..
तो चलीए न एक बार मेरे संग गाँव -देहात्.

सबसे अलग अनुभव तब होगा जब कोई बात करता है ..फोन पर भाई. एक बानगी देखिए-"का,,,का (जोर से)राजु ठीक हो न्......अरे यहाँ क की कहीन ..गेहुँ त कटा गया...पर मालिक आएगें तो न बिकेगा..उ तो पुरनीया से आबे न करते है.." बातो को लम्बा खिंचना तो कोई यहाँ से सिखे
.और भी तो बहुत कुछ है आपको बताने को ,गाँव के बारे में....तो कुछ देर खो जाइए न्..गाँवों की मस्त दुनिया में.

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