Tuesday, August 19, 2025

कुछ बातें कुछ यादें कुछ सवाल

कुछ किताबें आंगन के कोने में लगे हरसिंगार फूल के पुराने गाछ की तरह घर में दाखिल होती है। सितम्बर अक्टूबर में जब यह फूल आँगन को अपनी खुशबू में बाँध लिया करती थी, ठीक उसी समय हर सुबह गोबर से आँगन को निप भी दिया जाता था ताकि हरसिंगार गिरे तो उसकी पवित्रता कायम रहे! एक- एक फूल बांस की बनी फूल डाली में बिछा जाता था!
हम सबके जीवन से बड़ा अंगना कब गायब हो गया और गाम घर कब शहर में दाखिल हो गया, पता ही नहीं चला लेकिन हमारी आपकी स्मृति को भला हमने कौन छिन सकता है? इन्हीं सब स्मृति को सोशल मीडिया के आँगन में बिखरने वाली एक लेखिका की किताब हाथ आई है!

किताब का नाम है- 'कुछ बातें कुछ यादें कुछ सवाल '
इ समाद प्रकाशन से आई इस किताब की लेखिका हैं रंजना मिश्रा। Ranjana Mishra 

एक पाठक के तौर पर यह किताब मेरे लिए एक पुरानी डायरी की तरह है, जिसमें कुछ भी समाज से छुपाने की कोशिश नहीं की गई है। रोजमर्रा के जीवन में लेखिका ने जो कुछ भी भोगा, उसे हूबहू लिखते चली गई, यह साहस का काम है! 

हर की स्मृति में कुछ बातें होती है लेकिन उन बातों को फेसबुक और फिर किताब की शक्ल में ढाल देना, सबके बस की बात नहीं है।

रंजना मिश्रा ने संयुक्त परिवारों के टूटन को शायद नजदीक से देखा है। ठीक उसी अंदाज में नई पीढ़ी को एक्सप्रेस वे पर दौड़ते भागते भी वह शायद देख रही है। आत्म केंद्रित होती नई पीढ़ी के बीच बुजुर्गों के एकाकीपन को भी वह महसूस कर रही है! इन्हीं सब कटु सत्य को शब्दों के जरिए पन्ने में भरने का काम उन्होंने बखूबी किया है। 

इस किताब को यदि एक वाक्य में ढालने की बात हो तो मैं यही कहूंगा कि 'लेखिका की स्मृति में अतीत का एक ऐसा स्टाम्प लगा हुआ है,  जिसमें अनगिनत कहानियां भरी हुई है।'

आप इस किताब को किसी भी पन्ने से शुरू कर सकते हैं! ठीक फोटो एल्बम की तरह। स्मृति तो तस्वीर की ही माफ़िक होती है न! घर में रखे पुराने अल्बम की तस्वीर को देखते हुए हम अतीत में डूब जाते हैं। 

एक बेटी, एक बहू, एक माँ और जब ये 'तीनों' मिलकर डायरी लिख दे तो ? अपने लिए रंजना मिश्रा किताब ऐसी ही एक डायरी है,  हरसिंगार फूल माफ़िक!

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