एक पार्टी जो पिछले तीन दशक से बिहार की सत्ता वाली राजनीति से दूर रही, जिसे राज्य की जनता ने चुनावों में लगभग नकार दिया था, इस बार सड़कों पर अपने सहयोगी दलों के साथ रंग में दिखी। राहुल गांधी के नेतृत्व में वोटर अधिकार यात्रा में कांग्रेस के झंडे से पूरा बिहार पटा नजर आया।
नए दौर के लोग भले ही बिहार में कांग्रेस को शून्य मानते रहे हैं लेकिन एक वक्त था जब इस पार्टी का बिहार में दबदबा हुआ करता था। राज्य में कांग्रेस ने अलग-अलग मौकों पर सरकार बनाई। हालांकि, कांग्रेस का यह जलवा 1985 के विधानसभा चुनाव के बाद ढलान पर आ गया और इसके बाद से अब तक राज्य में कभी भी कांग्रेस अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई है। उसके आखिरी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र 1990 में थे। तब से लेकर अब तक कांग्रेस राज्य में सत्ता और विपक्ष दोनों जगह बेहद ही कमजोर स्थिति में रही है। लोगबाग तो यहां तक कहते हैं कि लालू यादव की पिछलग्गू पार्टी है कांग्रेस!
हालांकि लंबे अंतराल के बाद राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा की वजह से कांग्रेस ने न केवल बिहार में बल्कि देश में सुर्खियां बटोरी है, लेकिन क्या इस एक यात्रा से बिहार में कांग्रेस जीरो से हीरो बन जाएगी ?
याद करिए, 2020 के बिहार चुनाव में कांग्रेस ने 70 में से 19 सीटें जीतीं। यानी उसका स्ट्राइक रेट करीब 27 फीसदी का रहा, जो कि सहयोगी दलों- राजद (स्ट्राइक रेट- 52%) और भाकपा माले (63.15), भाकपा (33.33) और माकपा (50%) से कम रहा था। ऐसे में कांग्रेस को उनके सहयोगी दल भला क्यों अधिक सीट देंगे।
और यदि आपके पास अधिक सीटें नहीं रहेंगी तो भला क्यों आपको गठबंधन ड्राइविंग सीट पर बैठने को देगी। या फिर इतना ही भरोसा है तो अकेले मैदान में उतरा जाए, पार्टी में जान फूंका जाए !
यदि आप राहुल गांधी की अगुवाई वाली वोटर अधिकार यात्रा के इवेंट पर नजर घुमाएंगे तो देखेंगे कि इस यात्रा में अलग-अलग दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया लेकिन चेहरा लालू के बेटे नहीं बल्कि राहुल गांधी रहे। लालू पुत्र तेजस्वी यादव के संग वीआईपी के मुकेश सहनी भी प्रमुखता से दिखाई देते रहे। दूसरी तरफ राज्य के बाहर की भी कई पार्टियों ने यात्रा में राहुल का साथ दिया। इनमें द्रमुक के मुखिया और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से लेकर उद्धव शिवसेना के संजय राउत तक शामिल रहे।
राहुल की यात्रा को कवर करते हुए अहसास हुआ कि भले ही यह वे वोटर अधिकार की बात कर रहे हैं लेकिन उनका पूरा फोकस बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव पर था और साथ ही गठबंधन में यह बताना था कि बिहार पॉलिटिक्स में अब ब्रांड नैम राहुल गांधी हैं न कि लालू !
इस यात्रा का सकारात्मक पक्ष यह भी रहा कि बिहार में चुनाव आयोग की तरफ से कराए जा रहे विशेष गहन पुनर्निरीक्षण (एसआईआर) को लेकर महागठबंधन के सभी साथी साथ दिखे।
वोटर अधिकार यात्रा के दौरान अलग-अलग जिलों में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने आरोप लगाया कि यह सिर्फ वोटरों के नाम काटने का अभियान नहीं, बल्कि ऐसे समुदायों को सीधे तौर पर निशाना बनाने की साजिश है, जो इन दलों को वोट देते हैं।
राहुल ने 'वोट चोर गद्दी छोड़' का नारा दिया, जो कि पूरी रैली के दौरान गूंजता रहा।
हम इस बात को नकार नहीं सकते हैं कि राहुल की वोटर अधिकार यात्रा ने हजारों की संख्या में लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया। हालांकि, उनकी यात्रा ने विवादों को भी उसी तरह अपनी तरफ खींचा।
राहुल की रैली में सबसे बड़ा विवाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर की गई एक आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद उभरा। दरअसल, हुआ कुछ यूं कि जब राहुल की रैली दरभंगा जिले में थी, तब एक सभा के बाद भाजपा के खिलाफ जमकर नारेबाजी हो रही थी। यही नारेबाजी अचानक प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल में बदल गई। भाजपा ने इसे प्रधानमंत्री की मां के खिलाफ टिप्पणी बताते हुए राहुल की रैली पर जबरदस्त वार किए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर भाजपा आलाकमान ने इसे ओछी हरकत करार दिया।
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को इसे लेकर दुख जाहिर किया और कहा कि यह बिहार की मां-बेटी और बहनों का अपमान है। मां को गाली देने से बड़ा पाप और कुछ नहीं हो सकता। इस पूरे विवाद को लेकर भाजपा ने 4 सितंबर को बिहार बंद का आह्वान किया था।
राहुल की यात्रा में दूसरा विवाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के आने से भड़का। दरअसल, स्टालिन 27 अगस्त को मुजफ्फरपुर में यात्रा से जुड़े थे। इसे लेकर भाजपा ने सवाल उठाते हुए कहा था कि द्रमुक नेता सनातन धर्म को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हैं, बिहार के लोगों को गाली देते हैं और राजद-कांग्रेस के लोग इन्हें अपने साथ यात्रा में लेकर चलते हैं।
दरअसल, स्टालिन की पार्टी के सांसद दयानिधि मारन का दिसंबर 2023 में एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने बिहार के लोगों को टॉयलेट साफ करने वाला करार दिया था। उन्होने कहा था कि यूपी-बिहार के लोग, जिन्होंने सिर्फ हिंदी पढ़ी है, वे तमिलनाडु में सड़क निर्माण करते हैं और टॉयलेट साफ करने का काम करते हैं। वहीं, अंग्रेजी जानने वाले बच्चों को आईटी सेक्टर में अच्छी तनख्वाह मिलती है।
दूसरी तरफ स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन भी सनातन धर्म को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी कर चुके हैं।
इस यात्रा को लेकर बिहार में इन दिनों खूब बातें हो रही है। आप जहां चले जाएं, लोग पूछ रहे हैं कि क्या इस बार लालू यादव कांग्रेस को अधिक सीटें देंगे ?
यह तो आने वाले कुछ दिन में पता चल ही जाएगा कि क्या राहुल की यात्रा की वजह से उनकी पार्टी को महागठबंधन में सीटें अधिक मिलती है या नहीं लेकिन यह भी सच है कि राहुल गांधी को अभी बिहार में और मेहनत करने की जरूरत है।
बिहार में कांग्रेस का उदय सिर्फ राहुल गांधी की यात्रा और उनके ब्रांड नाम के सहारे नहीं हो सकता है। बिहार में पार्टी का संगठन लंबे समय से जर्जर हालत में है। जिला दफ्तर लगभग खाली पड़े हैं, कार्यकर्ता लगातार दूसरी पार्टियों में जा रहे हैं, अभी भी उनकी पार्टी में ऐसे लोग शामिल हो रहे हैं टिकट के लिए जिनका कांग्रेस से कभी कोई लेना-देना नहीं रहा है। राहुल गांधी के लिए यह कड़वा सच है कि पूरे राज्य में कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व राजद की छाया में दबा हुआ है।
जनमानस के बीच कांग्रेस की इस तस्वीर को बदलने के लिए राहुल गांधी को लगातार बिहार आना होगा। बिहार विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे का फॉर्मूला जो तय हो, लेकिन कांग्रेस को उन विधानसभा सीटों को भी अपने खाते में लेना होगा, जो एक दौर में उनका गढ़ हुआ करता था।
वोटर अधिकार यात्रा में उमड़ी भीड़ एक तरह से कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन भी था। राहुल गांधी भले कुछ न बोल रहे हों लेकिन भीड़ के जरिए वह लालू यादव को यह भी संदेश देने का प्रयास कर रहे थे कि आगामी बिहार चुनाव में टिकट बंटवारे में कांग्रेस को हल्के में नहीं लिया जाए।
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