Wednesday, July 02, 2025

गांव में आनंद बरखा

पिछली बारिश में ढेर सारे कंदब के पौधे लगाए थे। इस बारिश में ये पौधे खिल उठे हैं। चनका रेसीडेंसी के अहाते के आगे कदंब के पेड़ बारिश में भींगकर और भी सुंदर दिखने लगे हैं। पंक्तिबद्ध इन कदंब के पेड़ को देखकर लगता है जीवन में ‘एकांत’ कुछ भी नहीं होता है, जीवन ‘सामूहिकता’ का पाठ पढ़ाती है।
खेत घूमकर लौट आया हूं, साँझ होने चला है, पाँव कीचड़ में रंगा है। अपने ही क़दम से माटी की ख़ुश्बू आ रही है। पाँव को पानी से साफ़कर बरामदे में दाख़िल होता हूं, फिर एक़बार आगे देखना लगता हूं। हल्की हवा चलती है, नीम का किशोरवय पौधा थिरक रहा है। यही जीवन है, बस आगे देखते रहना है। 

अहा! ज़िंदगी पत्रिका के जुलाई- 25 अंक में अपनी यह रचना प्रकाशित हुई है। 

[अहा ज़िंदगी पत्रिका दैनिक भास्कर एप और वेबसाइट पर ईपेपर के रूप में पढ़ी जा सकती है।]

No comments: