Monday, May 05, 2025

चुनाव से पहले बिहार के सीमांत जिलों की बात

पिछले कुछ दिनों से हमारे सहयोगी साथी कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया जिले की यात्रा कर रहे हैं। वे आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर जो फिल्ड नोट्स भेज रहे हैं, उससे लग रहा है कि इस बार चुनावी समर में प्रत्याशियों की संख्या अधिक होगी। 

दावेदारियों का दौर जारी है। कोई पार्टी में शामिल हो रहा है तो कोई दूसरी पार्टी के लिए पुरानी पार्टी को अलविदा कह रहा है, सबके पीछे उम्मीदवार बनने की चाहत है। वैसे इस बात को लेकर निश्चिंत ही रहना चाहिए कि स्थानीय मुद्दों को लेकर बिहार इस बार चुनाव नहीं लड़ेगा!

कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया के अलग-अलग इलाको में विकास की बात से अधिक डेमोग्राफी को लेकर चर्चा हो रही है। दो दिन पहले ही एआईएमआईएम पार्टी के चीफ असदुद्दीन ओवैसी किशनगंज जिला के बहादुरगंज में थे, उस दिन वहां मौजूद साथी ने जो आँखों देखी सुनाई, वह अलग तस्वीर बयान करती है।

वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ एआईएमआईएम पार्टी ने बड़ी जनसभा का आयोजन बहादुरगंज में किया गया था। सभा में पार्टी सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र सरकार के साथ-साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, चंद्र बाबू नायडू और चिराग पासवान समेत आरजेडी-कांग्रेस पर भी तीखा हमला किया। 

ओवैसी ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी का आगाज हो चुका है और बिहार में अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का काम करेंगे। उन्होंने कहा कि पार्टी को मजबूत करने का काम किया जा रहा है। वहीं उन्होंने फिलहाल बिहार में किसी पार्टी के साथ गठबंधन से इनकार किया है। 

असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि फिलहाल अपनी पार्टी को मजबूत करने का काम वो कर रहे है। वहीं बिहार में हुई जातीय जनगणना पर सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना को इसलिए सार्वजनिक नहीं किया गया, क्योंकि उसमें मुसलमान सबसे अधिक पिछड़े हुए थे।

कुछ ऐसी ही बात जनसुराज के सुप्रीमो प्रशांत किशोर ने पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह के आवास पर भी कही थी। दरअसल आने वाले दिनों में इन इलाकों में मुस्लिम वोट को लेकर तरह तरह की बातें अब सुनने को मिलेगी। वहीं अन्य संगठन भी सक्रिय दिख रहे हैं। 

अपने पास आई शुरुआती रिपोर्ट में किशनंगज में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की सक्रियता को लेकर भी चर्चा हो रही है। सहयोगी साथियों के फिल्ड नोट्स इस बात का इशारा कर रहे हैं। दरअसल किशनगंज भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का जिला है, वहां उनका मेडिकल कॉलेज है। याद करिए, अमित शाह ने किशनगंज प्रवास भी किया था।

पूर्णिया से लेकर किशनगंज तक के सुदूर इलाकों में संघ की गतिविधियों पर भी नजर है लेकिन संघ का सबसे महत्वपूर्ण रूप, जिसे शाखा कहा जाता है, उसकी संख्या इन इलाको में काफी कम देखी जा रही है। जबकि पहले इन इलाकों में शाखाएं खूब लगती थी। कार्यवाह रह चुके एक बुजुर्ग स्वयंसेवक ने बताया कि 2014 से पहले सीमांत जिलों में जिस तरह शाखाएं लगती थी, अब वो बात नहीं रही! 

दूसरी ओर, चुनाव पूर्व पोस्टर बाज़ी की बात करें तो पूर्णिया से किशनगंज के रास्ते में लालू यादव की पार्टी और प्रशांत किशोर की पार्टी आगे दिख रही है। मुस्लिम बहुल बायसी में हाईवे पर प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज का एक भव्य ऑफिस भी दिखता है!

अररिया के जोकीहाट इलाके में एक व्यक्ति से जब बात हो रही थी तो उन्होंने हंसते-हंसते कमाल का एक स्टेटमेंट दिया- ' चुनाव नेता थोड़े लड़ता है, पैसा लड़ता है!'

बिहार को ग्राउंड से देखने का यह समय है लेकिन यह भी सच है कि चुनाव लड़ने के लिए पैसा इतना अधिक लूटाना पड़ता है कि लगता है कि पैसे की धमक ही चुनावी नैया पार कराएगी। 

बहरहाल, अभी से लेकर विधानसभा चुनाव तक आपके प्लेट में चुनावी कंटेंट अलग अलग स्वादों में परोसे जाएंगे, वह चाहे बड़ी पार्टी हो या फिर छोटी छोटी पार्टियां। आगे मधेपुरा, सहरसा, सुपौल की भी कहानी सामने आएगी। फिर दरभंगा, मधुबनी और मुजफ्फरपुर।

बड़े-बड़े बैनर से लेकर जहरीले संवाद का दौर अब शुरु होने वाला है। चुनावी स्क्रिप्ट लिखी जा रही है, अभी तो कहानी शुरु ही हुई है!

Friday, April 11, 2025

जब सपने में आए रेणु! [ फणीश्वरनाथ नाथ रेणु की आज पुण्यतिथि है ]


“मैं तो तुम्हारे जन्म से छह साल पहले ही उस ‘लोक’ चला गया था, फिर तुम्हें बार-बार मेरी याद क्यों आती है ? ख़ैर, एक बात बताओ , क्या सचमुच सुराज आ गया है वहां..? विदापत नाच वाले ठिठर मंडल के घर चुल्हा जलता है कि नहीं..?  विदापत नाच होता है कि नहीं?“

“और एक सवाल तुमसे पूछने का मन है-  कब तक रेणु की बात लिखते रहोगे? कितना कुछ बदलाव दिखता है मेरे मैला आँचल में, क्या तुम आज की परती परिकथा बाँच नहीं सकते? कुछ नया तलाश करो अपने अंचल में, जिसकी बोली-बानी सबकुछ अपनी माटी की हो..’
‘तुम जानते हो, कोसी प्रोजेक्ट के नहरों की कथा अधूरी ही रह गई मुझसे। ठीक वैसे ही जयप्रकाश की भी कथा बाँच न सका।  

अरे हाँ, अररिया ज़िले की बसैठी की कहानी, रानी इंद्रावती की कहानी..कितना कुछ बांकी है और तुम हो कि मेरे मुहावरे में फँसे हो...

मेरे मुहावरे से बाहर निकलो , बाहर निकलो। सांप को केंचुल उतारते देखो हो? एक चिड़ियाँ होती है नीलकंठ, वह बहुत बारीकी से सांप पर नज़र रखती है।”

“तुम तो औराही ख़ूब जाते हो। सुनता हूँ कि मेरे नाम से कोई बड़ा सा भवन खड़ा कर दिया गया है बिहार की सरकार ने। चुनाव के वक्त सब दल की नजर रहती है हमारे नाम पर! सुनते हैं कि जाति की बात अब पहले से ज्यादा होने लगी है..."

"ख़ैर, ये सब तो माया है असल है ज़मीनी काम। जानते हो, मैं आजतक सुरपति राय और डॉक्टर प्रशांत का मुरीद हूँ, जानते हो क्यूँ? दरअसल  दोनों ही ज़मीन पर काम करते थे। फ़ील्ड वर्क का कोई तोड़ नहीं होता। महान विचार से जमीनी बात जरा भी कम नहीं होती। आज तुम जहाँ हो, वहाँ तुम अपने होने को सिद्ध करो। नया कुछ शब्द के ज़रिए दिखाओ, जो तुम्हारे आसपास ही घट रहा है। अच्छा-बुरा जो भी...”

“तुम सोच रहे होगे कि आज यह बूढ़ा भाषण देने के मूड में है लेकिन क्या करूँ, मुझे अपने अंचल की सही तस्वीर देखनी है। तुमने ‘ऋणजल धनजल’ पढ़ा है ? मैं ‘ऋणजल धनजल’ में अलग हूं। मुझे वही चाहिए। “

“ये बताओ ज़रा, अपने अंचल में कौन है जो जनता के बीच जाकर जीवन की त्रासदी और राजकाज की विफलता को, प्रकृति के क्रोध को दुनिया के सामने लाने का प्रयास कर रहा है? “

“एक बात जानते हो, कभी वेणु से पूछना कि नियति क्या होती है। मुझे बड़ा बेटा वेणु बहुत खिंचता है। बहुत कम उम्र में ही मैंने उसके कंधे पर सब भार सौंप दिया था। लेकिन उसने उस भार को स्वीकार किया। आज जब कभी वेणु को तुम्हारे मार्फ़त सुनता हूँ तो लगता है कि मेरा बड़ा बेटा तो कमाल का किस्सागो है! “

“ख़ैर, ये जान लो और मन में बाँध लो कि नियति ने तुम्हें उस जगह घेर दिया है जहाँ सम्पन्नता,विपन्नता,आपदा, उल्लास सब कुछ अथाह है, बस उसे अपनी आँख से देखने का प्रयास करो..”

........

मैं टकटकी लगाए ‘रेणु’ को देख-सुन रहा था। मैं अपने शबद-योगी को देख रहा था। जिस तरह मैला आंचल में डॉक्टर प्रशांत ममता की ओर देखता है न, ठीक वही हाल मेरा था..यह जागती आँखों का एक सपना था। 

{ 11 अप्रैल 1977, रात साढ़े नौ बजे, रेणु उस ‘लोक’ चले गए, जहाँ से आज भी वे सबकुछ देख रहे हैं शायद..}

Tuesday, April 08, 2025

जहां मिलती है गंगा और कोसी- त्रिमोहिनी संगम'

पूर्णिया जिला स्थित चनका गांव में जहां अपनी खेती बाड़ी की जमीन है, वह कोसी की एक उपधारा कारी कोसी का तट है। वहीं शहर पूर्णिया सौरा नदी के तट पर बसा है। हालांकि ये दोनों नदियां हम लोगों की वज़ह से नाले से भी बदतर बन चुकी है। नदी की बातें करने वाले अब नहीं के बराबर हैं, बात होती है तो बस प्लॉट की! बात होती है जमीन के टुकड़े को बेचकर शहर बसाने की!
खैर, यह सब लिखने के पीछे कोसी और गंगा नदी के संगम स्थल की यात्रा की कहानी है। हाल ही में शोध कार्य के सिलसिले में सूरत स्थित सेंटर फ़ॉर सोशल स्टडीज़ में एसोशिएट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत Sadan Jha  सर पूर्णिया आए थे। हमने उनके संग ही उस जगह की यात्रा की, जहां गंगा से मिलती है कोसी नदी। खुद पर गुस्सा भी आया कि अबतक 'त्रिमोहिनी संगम' क्यों नहीं गया था!

बिहार के कटिहार जिला स्थित कुर्सेला के पास गंगा के साथ कोसी नदी संगम करती है, जो 'त्रिमोहिनी संगम' के नाम से जानी जाती है।

इस जगह आप आसानी से नहीं पहुंच सकते हैं क्योंकि कोई तय रास्ता नहीं है। कुर्सेला पुल से जब हम नीचे उतरते हैं तो बाईं तरफ जो रास्ता दिखता है वही आपको कोसी गंगा संगम तक पहुंचाएगी।

नदी के ऊपर रेलवे का पुल, गुजरती आवाज देती रेलगाड़ियां लेकिन नीचे दूर दूर तक कोई नहीं,  एकदम सुनसान! नो मेंस लैंड! सफेद बालूचर का इलाका। 

पहले सुनते थे कि कोसी जिधर से गुजरती है, धरती बाँझ हो जाती है। सोना उपजाने वाली काली मिट्टी सफेद बालूचर का रूप ले लेती है। पहली बार इस बात को अनुभव करने का मौका मिला लेकिन बालूचर में अब इस मौसम में लोगबाग तरबूज उपजा लेते हैं, इसकी अलग कहानी है।

कोसी नदी और गंगा नदी जहां संगम करती है, वहां की धारा देखने लायक है। वहाँ जब हम पहुंचने की जुगत में थे और बालू वाले इलाके में फंस गए थे, तो उसी दौरान तीन लड़के दूर के किसी गांव से इसी संगम में डुबकी लगाने आ रहे थे और इस तरह 11 वीं में पढ़ने वाले ये तीन किशोर हमारे गाइड बन गए, फिर क्या था, इस अंचल की समसामयिक कहानियों का पिटारा ही खुल गया! इसकी कहानी फिर कभी।

करीब तीन किलोमीटर पैदल-पैदल धूल उड़ाते जब हम 'त्रिमोहिनी संगम' पहुंचे तो वहां की हवा ने हमारी सारी थकान को मानो हर लिया। दोनों नदियों का पानी अपने रंग की वजह से पहचाना जा सकता है, नील वर्ण में गंगा तो मटमैली कोसी लेकिन जहां दोनों मिलती है वहां के रूप के बारे में क्या कहें! अपरूप !

हम जब भी कोसी - गंगा की बात करते हैं तो बाढ़ पर अपनी बात रोक देते हैं लेकिन नदियों के जीवन पर और नदियों के आसपास के जीवन पर बातें बहुत कम होती है। उम्मीद है आने वाले समय पर सदन सर इस पर बातें करें। अपने लिए सदन सर उन गिने-चुने इतिहासकारों में से हैं, जो अँग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी में भी गंभीर शोधपूर्ण लेखन करते रहे हैं।

उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु की आंचलिक आधुनिकता का विश्लेषण करते हुए सदन सर रेणु के अनोखे लहजे, कोसी अंचल की सांस्कृतिक स्मृति और कहन के अनूठेपन को व्याख्यायित करते हैं।

कोसी गंगा संगम पहुंच कर मुझे अहसास हुआ कि यही रास्ता हमें कोसी अंचल की कथा सुना सकता है। रेणु कहते थे कि  'घाट न सूझे बाट न सूझे,  सूझे न अपन हाथ ' कुर्सेला पुल से जब हम संगम की तरफ भागे जा रहे थे तो उनकी यही पंक्ति अपने कानों में गूंज रही थी। 

इस यात्रा पर रिपोर्ताज लिखने की इच्छा है। माटी के रंग को समझने की इच्छा है कि कैसे कोसी की माटी बालू बनकर अलग तरीके से धंस रही है तो वहीं गंगा की माटी सूखकर पत्थर की तरह किस तरह से आवाज दे रही है।  एकतरफ़ मक्का, गेंहू उपज रहा है तो एकतरफ तरबूज!

दरअसल नदी के व्यवहार को नदी के साथ रहकर ही समझा जा सकता है, नदी ही लोक है, नदी ही कथा है। इसके लिए नदी के आसपास प्रवास करना होगा। एक दिन की यात्रा से यह संभव नहीं है, कोसी के पास जाना होगा कई बार....


Sunday, February 23, 2025

बिहार और किसान

मखान को लेकर खूब बातचीत हो रही है सोशल स्पेस पर। आज कृषि मंत्री दरभंगा आए थे, मखान को लेकर किसानों संग बातचीत की है। उधर, किसान और किसान को दिए जाने वाले सम्मान निधि की राशि जारी करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी कल (24 फरवरी) भागलपुर आ रहे हैं। विधानसभा चुनाव की आहटों के बीच किसान की बातें खूब होने लगी है।
राजनीति में किसान सबसे सॉफ्ट टार्गेट होता है। मंच से किसान संबंधी बातें करते हुए दलों के लोग अद्भूत- अद्भूत शब्दों का प्रयोग करते हैं! फ़सल के लिए रिसर्च, बोर्ड, भवन आदि की बात करते हुए अरबों रुपये की बातें सुनकर किसान का मुख मंडल चमक उठता है! 

किसान ये सब सुनकर वापस लौट आता है, खेत को खाद पानी से सींचता है, आसमान की तरफ देखता है उम्मीद लिए शानदार फसल की आशा करता है। 

दूसरी ओर, चुनाव के लिए समां बंध जाता है। टिकट और फिर प्रचार-प्रसार का काम लोगबाग देखने लगते हैं। 

सर्वे एजेन्सी हवाई अड्डा, मखान, किसान सम्मान निधि जैसे 'की-वर्ड' को लेकर शानदार तिलिस्म रचते हैं, एक से बढ़कर एक नारे गढ़े जाते हैं और फिर चुनाव परिणाम के बाद सभी बातें पुरानी हो जाती है....

राजधानी में उत्सवों का दौर शुरू हो जाता है, कला- साहित्य पर चर्चा होती है, समागम होता है तो कहीं डेवलपमेंट- इन्वेस्टमेंट पर पांच सितारा बैठकी जमती है। 

इन सबके बीच किसान कहीं खो जाता है अगले चुनाव तक के लिए। लेकिन वह एकजुट नहीं हो पाता है क्योंकि बाजार से उसकी दूरी बनी ही रह जाती है!

धान, गेंहूँ, मक्का, मखान उपजता है, उपजता ही रहेगा। बाद बांकी भूमि सर्वे के नाम पर जमीन को तिलिस्म बनाने का काम सरकार करती ही रहेगी आने वाले कुछ वर्षों तक। 

वैसे कल प्रधानमंत्री भागलपुर जाएँगे वाया पूर्णिया! बिहार में इस बार मोदी जी भाजपा संगठन और संघ को दरभंगा- पूर्णिया- भागलपुर यानि मिथिला, सीमांत और अंग क्षेत्र में सक्रिय कर रहे हैं। इन इलाकों के विधानसभा क्षेत्रों पर अलग से नजर रखी जा रही है! शायद, बदलाव की उम्मीद है संघ और संगठन को !

बाद बांकी किसान का क्या है! वही धान- गेंहूँ- मक्का- मखान!

Thursday, February 13, 2025

अथ सीसीटीवी कथा

कई चीजें जीवन में घटनाओं के जरिए आती है, ऐसी ही एक चीज है- सीसीटीवी कैमरा! बीते 8 फ़रवरी को शहर पूर्णिया वाले मेरे घर में चोरों ने ढंग से उत्पात मचाया। और इसी बदरंग घटना की वज़ह से सीसीटीवी कैमरे का जाल अपने घर आया!

8 फ़रवरी को सुबह सवेरे पूर्णिया के नवरतन हाता स्थित आवास में छत के रास्ते चोर फर्स्ट फ्लोर के फ्लैट में आसानी से प्रवेश करता है और किराएदार को लाखों की चपत लगाकर निकल जाता है। दरअसल किराएदार घर में था नहीं जिसका अंदाजा शायद चोर को था।
इस डिजिटल युग में चोरी की घटनाओं पर नजर डालने के लिए बाजार में सीसीटीवी कैमरे ने अपनी ऐसी जगह बना ली है, जैसे बुखार के मामले में पैरासिटामोल!

चोर शातिर होता ही है, इसलिए उसने रास्ता वही अपनाया जहां कैमरा नहीं लगा था। इस घटना के बाद पुलिस और मीडिया से जुड़े मित्रों का तुरंत सहयोग मिला और प्राथमिकी ( FIR) भी दर्ज हुई। पुलिस अनुसंधान में जुटी है।

ये तो हुई घटना की बात लेकिन इस घटना ने मुझे सीसीटीवी कैमरे के करीब लाकर खड़ा कर दिया। चोरी की वजह से मुझे भी अपने घर को सीसीटीवी कैमरे की कैद में करने को मजबूर कर दिया। 

दुनिया भर में लोग इस उपकरण की चपेट में हैं। एक वेबसाइट के अनुसार दुनिया भर में 770 मिलियन कैमरे हैं जो खतरनाक अपराध दरों को रोकने में मदद करते हैं। पता नहीं इसमें कितनी सच्चाई है लेकिन इतना तो सही है कि हम सब चोर की निगाह से बचने के लिए सीसीटीवी कैमरे की निगाह में कैद हो चुके हैं। 

मोबाइल ने तो पहले से ही हमें अपनी गिरफ्त में कर रखा है अब बड़ी तेजी से दीवार से लेकर खंभों तक में टांगे गए कैमरों की नजर हम सब पर बन चुकी है।

पूर्णिया के नवरतन हाता में जहां अपना घर है, ठीक उसके सामने बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का एक ऑफिसनुमा बड़ा सा कैम्पस है, यहां यह इसलिए लिखा जा रहा है क्योंकि जगह की पहचान घटनाओं के जिक्र में काफी मायने रखती है।

पूर्णिया पुलिस के जो अधिकारी घटना के तुरंत बाद आए, उनकी तेजी और कार्यशैली ने प्रभावित किया। लेकिन जिस तरह राज्य भर में चोरी और अन्य अपराध की घटनाएं हो रही हैं, उसपर केवल चिंता जाहिर करने से काम नहीं चलने वाला है।

चोरी की घटना की वज़ह से एक बड़ा खर्च कैमरे से कैम्पस को तथाकथित तौर पर सजाने में भी बर्बाद हुआ है और चोर के रास्ते को राज मिस्त्री के मार्फत बंद करने का खर्च सो अलग!

खैर, कैमरे से याद आया कि नासा के साथ मिलकर निकॉन ने अपना मिररलेस कैमरा स्पेस में भेजा है, Nikon Z9, जो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में पहुंच चुका है। इसका इस्तेमाल पृथ्वी की तस्वीरें खींचने के लिए किया जाएगा। ये पहला मिररलेस कैमरा है, जिसे स्पेस स्टेशन भेजा गया है। 

कैम्पस में हुई चोरी और फिर सीसीटीवी कैमरे से घर के कोनों कोनों को कैद करवाते वक्त मनोज बाजपेयी की एक फिल्म की खूब याद आ रही थी - 'गली गुलियां '

यह एक साइकोलॉजिकल ड्रामा है जो शहर की दीवारों और अपने दिमाग की उलझन में फंसे एक चुप्पी साधे व्यक्ति के बारे में है। यह फिल्‍म खुद को अपने दिमाग की दीवारों के कैद से आजाद करने की कहानी है।

फिल्म में मनोज बाजपेयी की दुनिया रहस्यमयी है। सिनेमाई पर्दे पर वह अकेलेपन की जिंदगी जी रहे होते हैं। फिल्म के चुप्पी साधे नायक ने अपना एकांत खुद चुना है लेकिन दूसरों की जिंदगी में चोरी-छुपे झांक कर खुद को व्यस्त रखता है। 

फिल्म का नायक पेशे से इलेक्ट्रीशियन है और पुरानी दिल्ली की गलियों और कई लोगों के घरों में उसने सी सी टी वी कैमरे फिट कर दिए हैं। घर में लगे कंप्यूटर पर वह सबकी जिंदगियों पर नजर रखता है कि कहां-क्या-क्यों हो रहा है। बिजली के उलझे तारों की तरह ही उसके बाल-दाढ़ी हैं और वह मनोरोगी लगता है।

यह सब लिखते वक्त सीसीटीवी के तार की दुनिया और फिर उस कैमरे में दर्ज फुटेज को खंगालते पुलिस विभाग के लोगों के बारे में सोचने लगता हूँ, सचमुच सीसीटीवी की मायावी दुनिया एक समानांतर दुनिया बनाने में जुट गई है!

Sunday, February 09, 2025

मेला किताबों का 2025

जब दिल्ली में था तो गाम के मेले को याद करता था। मेले की पुरानी कहानी बांचता था, और अब जब दिल्ली से दूर अपने गाम-घर में हूं तो 'किताब मेला' और 'जलसाघर ’ की याद आ रही है। क्योंकि आज पुस्तक मेला का अंतिम दिन है!

कॉलेज के दिनों में और फिर ख़बरों की नौकरी करते हुए प्रगति मैदान अपना ठिकाना हुआ करता था, पुस्तकमेले के दौरान। दिन भर उस विशाल परिसर में शब्दों के जादूगरों से मिलता था, उन्हें महसूस करता था।

हर बार अनुपम मिश्र से मिलता था। बाजार की चकमक दुनिया को अपनी बोली-बानी से निर्मल करने का साहस अनुपम मिश्र को ही था। अब जब वे नहीं हैं तो लगता है कि तालाब में पानी कम हो गया है, आँख का पानी तो कब का सूख गया...

उसी पुस्तक मेले में अपने अंचल के लोग मिल जाते थे तो मन साधो-साधो कह उठता था। अपने अंचल के लेखक चंद्रकिशोर जायसवाल से वहीं पहली दफे मिला था।

लेकिन समय के फ़ेर और खेती किसानी करते हुए हम धीरे धीरे इस मेले से दूर होते चले गए, शायद जीवन की माया यही है!

समय के फेर ने इस बार भी समय ने किसान को प्रगति मैदान से दूर रख दिया है लेकिन आभासी दुनिया में आवाजाही के कारण पुस्तक मेले को दूर से ही सही लेकिन महसूस कर रहा हूं।

मेले में मैथिली का मचान भी लगा है साथ पोथी घर भी , जहां दिल्ली वासी मैथिल प्रवासी का जुटान हो रहा है। उसको लेकर मन उत्सुक है। बार-बार फ़ेसबुक पर मैथिली मचान और पोथी घर का अपडेट देखता हूं। अपने सुशांत भाय की आज तस्वीर देखी, सत्यानंद भाई जी के जरिए,  मन खुश हो गया।

आज गाँव में खेत की दुनिया में जीवन की पगडंडी तलाशते हुए किताबों की उस मेले वाली दुनिया की ख़ूब याद आ रही है। इसी बीच आभासी दुनिया की वजह से राजकमल प्रकाशन की दुनिया में  'जलसाघर ’ का सुख ले रहा हूं।

तस्वीरों और विडियो ज़रिए पता चल रहा है कि मेले में खूब लोग आ रहे हैं,  आज भी। यह सब देखकर अच्छा लगता है।  और चलते-चलते इस किसान की किताब ‘इश्क़ में माटी सोना’ को भी राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल में देखा, किताब को देखने का अपना अलग ही सुख है! 

Thursday, February 06, 2025

पतझड़ सावन बसंत बहार!

पछिया हवा का ज़ोर आज ख़ूब दिख रहा है। तेज़ हवा के संग धूल जब देह से टकराता है न तो गुदगुदी का अहसास होता है। 
बसंत की झलक आज दिखने लगी है। मानों झिनी झिनी चदरिया से कोई हमें देख रहा हो। गाम में आज गाछ -वृक्ष की पत्तियाँ उड़ान भर रही है। सरसों के खेत से एक अलग तरह की महक आ रही है। 

सरसों के पीले फूल की पंखुड़ी इन हवाओं में और भी सुंदर दिख रही है। लीची की बाड़ी में इस बार मधुमक्खियों ने अपना घर बनाया है। पछिया हवा की वजह से मधुमक्खियाँ भी झुंड में इधर उधर उड़ रही है।
उधर, पछिया हवा के कारण बाँस बाड़ी मुझे सबसे शानदार दिख रहा है- एकदम रॉकस्टार! दरअसल इन हवा के झोंकों में बाँस मुझे रॉकस्टार की तरह लग रहा है। बाँस की फूंगी और बाँस का बीच का हिस्सा जिस तरह डोल रहा है , उसे देखकर लगता है कि बॉलीवुड का कोई नायक मदमस्त होकर नाच रहा है। 

इन हवाओं के संग रंगबिरंगी तितलियाँ भी आई है। मक्का के खेत में इन तितलियों ने डेरा जमाया है। मक्का के गुलाबी फूलों से इन तितलियों को मानो इश्क़ हो गया है !

पीले रंग की तितली जब मक्का के नए फल के लिए गुलाबी बालों में उलझती है तो लगता है कि प्रकृति में कितना कुछ नयापन है! इन्हीं गुलाबी बालों में मक्का का भुट्टा छुपा है। 

पछिया हवा के इन झोंकों से खेत पथार भी देह की माफ़िक़ इठलाने लगा है। फ़सलों के बीच से गुज़रते हुए आज यही सब अनुभव कर रहा हूं। पटवन का काम हो चुका है इसलिए मोबाइल पर देहाती दुनिया टाइप करता रहता हूं।

गाम घर का जीवन मौसम की मार के गणित में यदि फँसता है तो यक़ीन मानिए इन्हीं मौसम की वजह से अन्न देने वाली माटी सोना भी बनती है। 

वहीं गाछ-वृक्ष-फूल-तितली-जानवर आदि इन्हीं मौसमों में अपनी ख़ुशबू से हमें रूबरू भी कराते हैं...यही वजह है कि किसानी करते हुए अब हम भी कहने लगे हैं - पतझड़-सावन - बसंत- बहार ....