दावेदारियों का दौर जारी है। कोई पार्टी में शामिल हो रहा है तो कोई दूसरी पार्टी के लिए पुरानी पार्टी को अलविदा कह रहा है, सबके पीछे उम्मीदवार बनने की चाहत है। वैसे इस बात को लेकर निश्चिंत ही रहना चाहिए कि स्थानीय मुद्दों को लेकर बिहार इस बार चुनाव नहीं लड़ेगा!
कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया के अलग-अलग इलाको में विकास की बात से अधिक डेमोग्राफी को लेकर चर्चा हो रही है। दो दिन पहले ही एआईएमआईएम पार्टी के चीफ असदुद्दीन ओवैसी किशनगंज जिला के बहादुरगंज में थे, उस दिन वहां मौजूद साथी ने जो आँखों देखी सुनाई, वह अलग तस्वीर बयान करती है।
वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ एआईएमआईएम पार्टी ने बड़ी जनसभा का आयोजन बहादुरगंज में किया गया था। सभा में पार्टी सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र सरकार के साथ-साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, चंद्र बाबू नायडू और चिराग पासवान समेत आरजेडी-कांग्रेस पर भी तीखा हमला किया।
ओवैसी ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी का आगाज हो चुका है और बिहार में अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का काम करेंगे। उन्होंने कहा कि पार्टी को मजबूत करने का काम किया जा रहा है। वहीं उन्होंने फिलहाल बिहार में किसी पार्टी के साथ गठबंधन से इनकार किया है।
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि फिलहाल अपनी पार्टी को मजबूत करने का काम वो कर रहे है। वहीं बिहार में हुई जातीय जनगणना पर सवाल खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना को इसलिए सार्वजनिक नहीं किया गया, क्योंकि उसमें मुसलमान सबसे अधिक पिछड़े हुए थे।
कुछ ऐसी ही बात जनसुराज के सुप्रीमो प्रशांत किशोर ने पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह के आवास पर भी कही थी। दरअसल आने वाले दिनों में इन इलाकों में मुस्लिम वोट को लेकर तरह तरह की बातें अब सुनने को मिलेगी। वहीं अन्य संगठन भी सक्रिय दिख रहे हैं।
अपने पास आई शुरुआती रिपोर्ट में किशनंगज में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की सक्रियता को लेकर भी चर्चा हो रही है। सहयोगी साथियों के फिल्ड नोट्स इस बात का इशारा कर रहे हैं। दरअसल किशनगंज भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का जिला है, वहां उनका मेडिकल कॉलेज है। याद करिए, अमित शाह ने किशनगंज प्रवास भी किया था।
पूर्णिया से लेकर किशनगंज तक के सुदूर इलाकों में संघ की गतिविधियों पर भी नजर है लेकिन संघ का सबसे महत्वपूर्ण रूप, जिसे शाखा कहा जाता है, उसकी संख्या इन इलाको में काफी कम देखी जा रही है। जबकि पहले इन इलाकों में शाखाएं खूब लगती थी। कार्यवाह रह चुके एक बुजुर्ग स्वयंसेवक ने बताया कि 2014 से पहले सीमांत जिलों में जिस तरह शाखाएं लगती थी, अब वो बात नहीं रही!
दूसरी ओर, चुनाव पूर्व पोस्टर बाज़ी की बात करें तो पूर्णिया से किशनगंज के रास्ते में लालू यादव की पार्टी और प्रशांत किशोर की पार्टी आगे दिख रही है। मुस्लिम बहुल बायसी में हाईवे पर प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज का एक भव्य ऑफिस भी दिखता है!
अररिया के जोकीहाट इलाके में एक व्यक्ति से जब बात हो रही थी तो उन्होंने हंसते-हंसते कमाल का एक स्टेटमेंट दिया- ' चुनाव नेता थोड़े लड़ता है, पैसा लड़ता है!'
बिहार को ग्राउंड से देखने का यह समय है लेकिन यह भी सच है कि चुनाव लड़ने के लिए पैसा इतना अधिक लूटाना पड़ता है कि लगता है कि पैसे की धमक ही चुनावी नैया पार कराएगी।
बहरहाल, अभी से लेकर विधानसभा चुनाव तक आपके प्लेट में चुनावी कंटेंट अलग अलग स्वादों में परोसे जाएंगे, वह चाहे बड़ी पार्टी हो या फिर छोटी छोटी पार्टियां। आगे मधेपुरा, सहरसा, सुपौल की भी कहानी सामने आएगी। फिर दरभंगा, मधुबनी और मुजफ्फरपुर।
बड़े-बड़े बैनर से लेकर जहरीले संवाद का दौर अब शुरु होने वाला है। चुनावी स्क्रिप्ट लिखी जा रही है, अभी तो कहानी शुरु ही हुई है!