Monday, November 22, 2021

कुछ आदतें छूट गई

जाने कितने दिनों बाद क़लम पकड़ी है
पन्नों में लिखने की ख़्वाहिश जागी है
दफ़्तर वाली नौकरी छोड़े 
कुल जमा नौ साल हो गए
कि इन गुज़रे सालों में 
मैं कितना बदल गया
कुछ आदतें छूट गई
मसलन चमड़े का काला जूता पहनना 
सलीक़े से फ़ॉर्मल कपड़े पहनना
दिसंबर में जब ऑफ़िस में होती थी 
सर्द शाम में पार्टी 
तो सज सँवर कर कोर्ट पहनना
अब यह सब नहीं भाता है...
सच कहूँ तो अब जूते काटते हैं
ठीक स्कूल के दिनों की तरह!
अब चप्पल भाता है
जब भी किसी से मिलता हूँ 
सुनता हूँ उनकी बातें
तब ख़ुद ब ख़ुद पाँव नंगे हो जाते हैं
पाँव ज़मीन को स्पर्श करने को 
हर वक़्त बेचैन रहता है
जब भी अपने प्रियजनों को सुनने 
सामने बैठता हूँ 
बस सुनने की ख़्वाहिश रहती है
अब बोला कम
सुना ज़्यादा जाता है
ठीक वैसे ही जैसे 
अब छपने से अधिक
पढ़ना अच्छा लगता है !

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