Monday, November 08, 2021

70 साल का एक युवा पुस्तकालय!

बिहार के गाम-घर का पुस्तकालय अपनी स्थापना के 70 साल पूरे होने पर एक कार्यक्रम का आयोजन करता हैं, जहां बातचीत होती है, जहां कुछ युवा अपने स्टार्टअप की नुमाइश करते हैं, जहां आसपास के कवि इकट्ठा होते हैं और कविता पाठ करते हैं। यहां यह भी बताना जरूरी है कि पुस्तकालय को खड़ा करने का काम गाम-घर के लोगों ने ही किया। भवन से लेकर किताब तक, कुर्सी टेबल से लेकर कंप्यूटर तक..सबकुछ लोगों के आर्थिक सहयोग से। शायद सहकारिता शब्द ऐसे ही काम के लिए बना है। 
बिहार के मधुबनी जिला स्थित यदुनाथ सार्वजनिक पुस्तकालय रविवार को जब अपनी स्थापना के 70 साल पूरे होने पर पुस्तकालय परिसर में कार्यक्रम आयोजित कर रहा था तो लग रहा था मानो घर के किसी बुजुर्ग का जन्मदिन मनाने हम आंगन में जमा हुए हैं। एक ऐसा बुजुर्ग जो 70 की अवस्था में भी हर दिन नया सीखने के लिए तैयार है। एक ऐसा बुजुर्ग जिसके दुआर पर आप बैठकर दुनिया जहान की बात कर सकते हैं, जो यह सीखाता है कि खराब से खराब वक्त में भी निराश नहीं होना है, संवाद होना चाहिए, लोग साथ आएंगे और एक दिन सचमुच में ‘अच्छे दिन’ देखने को मिल जाएगा।

यहां पहुंचकर आप महसूस कर सकते हैं कि पुस्तकालय का अर्थ केवल किताबों का संकलन नहीं है। पुस्कालय जहां, संवाद के लिए जगह हो, नई तकनीक के लिए स्पेस हो, युवा उद्यमियों के संग वार्ता हो, नई पीढ़ी के लिए कंप्यूटर ट्रेनिंग हो...। यह सब मिथिला के इस पुस्तकालय परिसर में आपको दिख जाएगा, कुछ न कुछ हर दिन। 

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 57 (NH 57) के ठीक किनारे स्थित यह पुस्तकालय मुझे भविष्य में गांव का एक ऐसा ठिकाना नजर आ रहा है, जिसके बदौलत इलाके की नई पहचान बनेगी, बस इसकी ब्रांडिंग की जरूरत है। दरअसल हाइवे पर पुस्तकालय होना बड़ी बात है। क्योंकि यह फोर लेन सड़क नहीं है बल्कि बिजनेस हाउस है। 

कल जब पूर्णिया से लालगंज गांव पहुंचना हुआ तो उसके पीछे पुस्तकालय के संग एक निजी स्वार्थ भी था, वह था  Ogilvy Advertising के नेशनल क्रिएटिव डाइरेक्टर रह चुके राजकुमार झा को सुनना। राज सर मेरी जिंदगी की कमाई हैं, उन्हें मैं महसूस करता हूं। वह इन दिनों बिहार के अपने गांव फुलपरास में डेरा जमाए हुए हैं और रूरल टूरिज्म से लेकर कम्यूनिटी रेडियो जैसे तमाम तरह के काम को वह इस बार गांव में अंजाम दे रहे हैं। 

पुस्तकालय के इस कार्यक्रम में राज सर ने भागीदारी विषय पर एक छोटा सा व्याख्यान दिया, जिसमें उन्होंने इस बात पर जोड़ दिया कि किस तरह से पुस्तकालय को गांव के प्राइमिरी स्कूलों से जोड़ा जाए। दरअसल वह स्कूल आउटरिच प्रोग्राम को लेकर अपनी बात रख रहे थे। साथ ही उन्होंने कहा कि यह मुफ्त में न हो। साथ ही उन्होंने कार्यक्रमों में युवाओं को स्पेस देने की बात की ताकि नई पीढ़ी की बात सुनी जाए।  

इसके आलावा पुस्तकालय के अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और सचिव को भी सुनने का मौका मिला। कोषाध्यक्ष ने जिस तरह से साल भर के खर्च और आमदनी का ब्यौरा दिया वह आकर्षित करने वाला रहा। इसके अलावा कार्यक्रम के अध्यक्ष मित्रनाथ जी को सुनकर भी बहुत कुछ नया सीखने को मिला। वह हिंदी-अंग्रेजी-उर्दू-मैथिली के जानकार हैं। एक शानदार वक्ता।  उन्होंने डॉक्टर अमरनाथ झा का जिक्र करते हुए बताया कि एक दफे उन्होंने किसी को कहा था - " लिखना - पढ़ना नहीं बल्कि पढ़ना - लिखना होना चाहिए... पहले पढ़ना जरुरी है.. "

मैं जब भी किसी व्यवस्थित पुस्तकालय को देखता हूं तो बाबूजी की याद आती है। वे पढ़ते थे, खूब पढ़ते थे। उनकी एक समृद्ध लाइब्रेरी हुआ करती थी, वे किताब बाँटते थे। उनकी कई आदतों में एक था- किताब बांटना। 17 साल की उम्र में उन्होंने एक निजी पुस्तकालय बनाया था, जिसे वे किताबों से समृद्ध करते रहे। धान, पटुआ, मूंग, गेंहू के संग वे दुआर को किताब से भी सजाते थे।

सच कहूँ तो रविवार को यदुनाथ सार्वजनिक पुस्तकालय पहुंचकर खुद को मानसिक रूप से समृद्ध करने का मौका मिला। हम सबकी आदत में किताब पढ़ना शामिल होना चाहिए। किताबें हमें भीतर से समृद्ध करती है, किताबें हमें विपरित से विपरित परिस्थितियों में राह दिखाती है।

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