Sunday, October 24, 2021

जीवन यात्रा..

सोशल मीडिया की एक चीज जो निजी तौर पर मुझे बहुत पसंद है, वह है -मेमोरी! आप दो साल, पांच साल, दस साल पहले क्या लिखते थे, क्या सोचते थे, किसी को देखने समझने का नजरिया क्या था ? ये सबकुछ बताता है आपका सोशल मीडिया एकाउंट. 

यह दुनिया हर पल बदलती है, हम बदल जाते हैं, मन के तार टूटते- जुड़ते हैं. ऐसे में खुद को बदलते देखने की आदत हमें अपने भीतर डालनी चाहिए. गौर से देखियेगा किसी वृक्ष को. हर साल उसकी पत्तियाँ झड़ जाती हैं लेकिन पतझड़ के बाद वह फिर से उसी रंग रौनक में धरती पर उजास बिखेर देती है.

फलदार वृक्ष फल देते हैं, फूल के पौधे फूल... पौधे का रंग-रूप वक्त के साथ बदल तो जाता है लेकिन  वह अपने गुण को नहीं बदलने देता है. आम का पेड़ अपनी डाली पर लीची का फल देना शुरू नहीं कर देता है! बदलाव की आँधी में वृक्ष बस वृक्ष ही रहता है! 

आज सुबह सुबह यह सब लिखते हुए गुजरा वक्त खूब याद आ रहा है. गांधी विहार, मुखर्जी नगर, कर्मपुरा, लाडो सराय, नोयडा, कानपुर होते हुए मन पूर्णिया पहुँच जाता है. हम चलते-चलते कहीं न कहीं पहुँच ही जाते हैं. 

हर किसी के जीवन में एक लंबी यात्रा का लेखा जोखा होता है, जिसका ऑडिट और कोई नहीं बल्कि उसे खुद करना होता है. यह एक जैविक प्रक्रिया है, जिसमें खुद के बदलाव को समझने बूझने का साहस खुद में पैदा करना होता है.

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