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Monday, May 02, 2011

लिखते रहने का सम्मान


37 वर्षों का अध्यापकीय और 60 वर्षों का लेखकीय जीवन, क्या कम है?  मैं यह सवाल किसी नकारात्मक लहजे नहीं पूछ रहा हूं बल्कि इसी बहाने साहित्यकार निशांतकेतु जी की बात करना चाहता हूं। एक शख्स जिसने साहित्य की हर विधा को छुआ और लोगों को पढने का बहाना भी दिया। पिछले दिनों दिल्ली में उन्हें सम्मानित किया गया वो भी शब्दों से। दिल्ली में हाल ही में आचार्य निशांतकेतु पर एक अभिनंदन ग्रंथ सचल तीर्थ वागर्थ का लोकापर्ण किया गया।

900 पन्नों में निशांतकेतु के जीवन और साहित्य को संवारा गया है। देश भर के 125 लोगों ने निशांतकेतु जी को केंद्र में रखकर कलम चलाई है। इस काम में सुलभ इंटरनेशनल की महती भूमिका है। सुलभ के संस्थापक डॉक्टर विंदेश्वर पाठक का कहना है कि निशांतकेतु जी आज जो भी हैं, वह निरंतर लिखते रहने की वजह से हैं। उन्होंने निशांतकेतु जी के लिए निरंतर लेखनरत रहने की कामना की.

मैं इसे लिखते रहने का सम्मान मानता हूं। दरअसल आप जो लिखते हैं, उसका प्रभाव कहां तक पड़ता है, यह सबसे बड़ी बात होती है। मीडिया में जिसे रीडर ग्रुप कहा जाता है, साहित्य में वही प्रशंसक समूह बन जाता है। मसलन आपके लिए रवींद्र नाथ टैगोर का साहित्य सबकुछ है। निशांतकेतु जी को पढ़ने वाले भी यही मानते हैं। निशांतकेतु जी को योशाग्नी और जिन्दा जख्म उपन्यास के लिए अधिक जान जाता है।

हाल ही में एक वेबसाइट पर उनका साक्षात्कार पढ़ा था, जिसमें उनसे जब पूछा गया कि वे वर्तमान साहित्य जगत के लिए क्या संदेश देना चाहते हैं तो उन्होंने कहा-

सच पूछिए तो साहित्य का पाठक किसी संदेश और आशीर्वाद की अपेक्षा नही रखता जो भी हम से ऐसी अपेक्षा रखते हैं उन्हें मेरे साहित्य से गुजरना होगा संदेश और सुभकामना सब कुछ वही उपलब्ध हैं संदेश और शुभकामना प्रकट करने वाले ऊंचाई पर बैठ जाते हैं और श्रोता पर बोझ बन जाते हैं सच्चा साहित्यकार कभी किसी पर बोझ नही बनना चाहता वह समरस होना जनता है उस की प्रकृति असम्बद्ध और स्वच्छंद की होती है धर्म गुरुओं और संत परम्परा में उपदेश की परम्परा है साहित्य में तो हद से हद कन्तासम्मितात्योप्देश्युजेका स्वरूप माना जाता है रचना कार सभी भूत (मानव ,पशु पक्षी ,वनस्पति )इत्यादि पर अपने स्व का विस्तारं कर फ़ैल जाता है और फिर अपने भीतर समान रूप से सब को स्थान देने वाला व्यक्ति साहित्यकार बन जाता है ईशोपनिषद की पंक्ति है-
यस्तु सर्वाणि भूतान्यत्म्न्ये वानुप्श्यती
स्र्व्भूतेशु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते

Saturday, August 18, 2007

सुलभ का एक और कारनामा


-एक नयी तकनीक की गयी विकसित
-इससे पहले टू-पिट शौचालय तकनीक जिसने पूरे विश्व में प्रसिद्धि पायी


सफाई के क्षेत्र में सुलभ ने शुरू से हीं कई बड़े कार्य किए हैं। एक ब्रांड के तौर पर सुलभ का कार्य इन दिनों आगे की ओर बढ़ रहा है। न केवल भारत बल्कि विदेशों में यह संस्था बढ़-चढ़ कर काम कर रही है। सफाई के क्षेत्र में पूरी दुनिया में टॉप सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गेनाजेशन ने एक बार फिर सफाई के क्षेत्र में एक बड़ा कारनामा किया है।
सुलभ ने अपनी नयी तकनीक के बदौलत गंदी होती जा रही यमुना-गंगा नदी के जल को साफ करने की बात कही है। सुलभ के डॉ. विन्देश्वर पाठक ने बताया कि यह नयी तकनालाजी न केवल नदियों को प्रदूषित होने से बचाएगी, अपितु कुछ दूरी तक रहने वाले लोगों के लिए पानी की समस्या का भी समाधान करेगी।
सुलभ स्वच्छता और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता और इस नयी तकनीक को विकसित करने वाले डॉ. पाठक का कहना है कि हमारी रिसर्च टीम ने तारकोल आधारित जिस अल्ट्रा वॉयलेट वाटर फिल्टर का विकास किया है वह मानव मल से चलने वाली बॉयोगैस प्लांट के अवशिष्ट और अपजल का शोधन करती है। यह शोधित जल रंगहीन, गंधहीन और पैथोजेन से मुक्त होता है।
डॉ. पाठक ने आगे बताया कि इस जल का उपयोग आप मछली पालन में कर सकते हैं, वहीं बागवानी में भी सिंचाई के लिए इस जल का आराम से इस्तेमाल किया जा सकता है। अल्ट्रा वॉयलेट वाटर फिल्टर से एकत्रित जल का आप कई तरह से उपयोग में ला सकते हैं। मसलन इस प्रक्रिया से जमा किए गये जल को तालाब या नदी में छोड़ा जा सकता है। डॉ. पाठक के अनुसार आप यकिन कर सकते हैं कि इससे कोई प्रदूषण नहीं होगा। खासकर इस विधि से गंगा और यमुना जैसी नदियों को प्रदूषण से मुक्ति मिल सकती है।
सुलभ की इस नयी तकनीक को लेकर डॉ. पाठक काफी प्रसन्न नजर आए। गौरतलब है कि 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने गंगा कार्ययोजना नाम से एक महत्वाकांक्षी योजना का श्रीगणेश किया था। सुलभ की इस नयी तकनीक को उसी से जोड़ कर देखा जा सकता है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस जल में कई प्रकार के सूक्ष्मतम पोषक तत्व मौजूद रहते हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि यह तकनीक भी सुलभ के टू-पिट शौचालय की तरह लोकप्रियता हासिल कर पाएगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या ग्रामीण विकास मंत्रालय सुलभ के इस नये कारनामे को अपने निर्मल-ग्राम योजना में शामिल करता है। यह सच है कि यदि इस तकनीक का उपयोग ग्रामीण इलाके में युद्द स्तर पर किया जाए तो कई फायदे एक साथ नजर आ सकते हैं।

सुलभ के विषय में और अधिक जानकारी के लिए लॉग-ऑन कर सकते हैं-

www.sulabhinternational.org
www.sulabhtoiletmuseum.org

या आप ई-मेल कर सकते हैं-

Sulabh1@nde.vsnl.net.in

Sulabh2@nde.vsnl.net.in