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Sunday, March 06, 2011

अमृत रंजन का आम का पेड़


ब्लॉगर दोस्त अमृत
किताब घर के साथ दोस्त
आम का पेड़ अब केवल गांव में ही नहीं दिखता, बल्कि शहरों में भी दिखने लगा है। आम्रपाली, मल्लिका जैसे तमाम हाईब्रिड नस्ल के आम के पेड़ अब आप गमले में भी उगा सकते हैं, लेकिन यहां मैं जिस आम के पेड़ की कथा बांचने जा रहा हूं वह मुझे वेब की दुनिया में मिला। वो भी तीसरी कक्षा में पढ़ रहे एक बच्चे का। बच्चे का नाम है अमृत रंजन। मतलब ब्लॉग राइटर अमृत रंजन भाया आम का पेड़। अपने बारे में यह बच्चा कहता है- ‘’मैं अमृत हूँ। पुणे में रहता हूँ। डीपीएस में तीसरी कक्षा में पढ़ता हूँ। कंप्यूटर पर हिन्दी में लिखना आसान है और यह सब मैं खुद लिखता हूँ।‘’

अमृत की ताजातरीन पोस्ट स्केच पर आधारित है, जिसका टाइटल उन्होंने रखा है- शेर, बंदर और बूढ़ा। लेकिन मुझे जो पोस्ट सबसे अधक पसंद आ रही है, वह है- किताब घर। मेमोरी लेन की बात करने वाले हम जैसे लोग, जिन्हें पुरानी यादों को शब्दों के जरिए पढ़ने में सुकून मिलता है, उसे यह पोस्ट जरूर पढ़नी चाहिए। यहां अमृत ने अपने पिता और दादा जी के शौक को शब्दों में ढाला  है। वह लिखते हैं-


‘’
मेरे पापा ने यह बुक शेल्फ ख़रीदी है। मेरे किताब की जगह बीच वाले खटाल में है। मेरे पास तो बहुत कम किताबें हैं लेकिन मेरे पापा के पास बहुत सारी किताबें हैं। और मेरे दादाजी के पास पूरी चार-पाँच अलमारी भरी हुई है। उन्होंने सारी किताबें पढ़ ली है। मुझे भी वह सारी किताबें पढ़नी है। जब मैं वह पढ़ लूँगा, तब दादाजी मुझे बहुत प्यार करेंगे। फिर जब मैं अपने गाँव से वापस पुणे आ जाऊँगा, तब दादाजी मुझे बहुत याद करेंगे। अभी मैं पुणे में ही हूँ। दादाजी का भी किताबों से भरा घर और यहाँ पुणे में भी ढेर सारी किताबें। यही है मेरा किताब घर।‘’

इस पोस्ट में उन्होंने अपने नए बुक शेल्फ की तस्वीर भी लगाई है (जिसे देखकर मुझे भी खरीदने का दिल कर गया)।

अमृत शरारती है या नहीं, यह तो मैं नहीं जानता क्योंकि हमारी मुलाकात नहीं हुई है लेकिन उसके एक पोस्ट को पढ़ने के बाद ऐसा कह सकता हूं जनाब शातिर हैं, इसमें कोई शक नहीं। उनकी यह पोस्ट है-
मेरे मित्र। इसमें बच्चों की शरारत के अलावा जिस नई बात पर मेरी निगाहें टिकती है वह सोसाइटी है। दरअसल इन दिनों शहर और सोसाइटी की कहानी बांचने की वजह से यह शब्द मेरा यार बना हुआ है। अमृत लिखते हैं-

...वह आजकल दूसरी सोसाइटी में रहने चला गया है। वह मुझे बहुत याद आता है। मेरे दूसरे मित्र का नाम है अक्षज..।

यहां सोसाइटी के बारे में अमृत ने ऐसे लिखा मानो वह एक दूसरा शहर हो। दरअसल बच्चों के लिए यह लिखना सच भी है, क्योंकि वे दूरियों को दिल से अनुभव करते हैं।

अमृत के बहाने ही मैं जान सका कि बच्चे भी ब्लॉग का इस्तेमाल कर सकते हैं, वो भी अलग ढंग से। आज जब नजर गई तो इसे मैंने अपने फेवेरिट लिंक में जोड़ भी दिया, इस तरह अमृत मेरे आभासी दोस्त बन गए हैं। एक ऐसा दोस्त जिससे मुलाकात नहीं हुई है, जिसके बारे में कुछ नहीं पता है, पता है तो बस यही कि वह कम्पूटर पर हिंदी में लिखता है....। 

ब्लॉग का पता है- http://aamrataru.blogspot.com/

Sunday, October 24, 2010

मौत-एक सच्चाई

कानपुर में हमारे एक सहकर्मी के पिता की मौत ने मुझे झकझोर कर रख दिया है। पल में खुशी, पल में गम जैसे शब्दों को कॉपी में लिखने वाले मेरे जैसे कई लोगों को मृत्यु जैसी घटना कई चीजों पर सोचने को मजबूर करती है। कानपुर से सटे उन्नाव जिले के शुक्लागंज में रहने वाले मेरे दोस्त - सहकर्मी के पिता की मौत की खबर सुनने के बाद हम सभी रविवार सुबह उनके घर पहुंचे फिर गंगा घाट, जहां दोस्त के पिता पंचतत्व में समा गए। मौत शब्द सुनकर एक सिरहन सी होती है, जिसमें भय के साथ सच्चाई से भागने की भी गंध महसूस होती है। यह गंध मुझे शुक्लागंज के गंगाघाट पर भी लगी, यही गंध कमलेश्वर की मौत पर दिल्ली में और चाचा की मौत पर अपने गांव चनका में भी लगी थी। शवों को जलते देख और धुंए से मन मिचलने लगा था। दौड़ते-हांफते एक चापाकल के पास गया और चेहरे पर खूब पानी उड़ेला, ताकि सच्चाई से भाग सकूं। वैसे गंध से जितनी दूरी बनाओ वह उतना ही खदेड़ता है। खैर,  आप सच्चाई से भाग नहीं सकते।

 दोस्त के घर पहुंचने पर उनके पिता के शव को बस एक नजर देखा, वहां सभी लोग रो रहे थे, इसलिए मैं वहां से दूर हो गया। दरअसल आंसूओं, संवेदनाओं के फेर में मेरा मन बावड़ा हो जाता है। लोग रो रहे थे, हम सब भी चुप खड़े थे, लेकिन एक बच्चा वहां मुस्कुरा रहा था। सोचा कितना अच्छा है बच्चा होना, कितना अच्छा होता है सबकुछ से अंजान होना। तभी पांच-छह साल के एक और बच्चे पर नजर गई, उसका कुछ खो गया था- दो रुपये का सिक्का। वह विचलित लग रहा था, तबतक जबतक उसका खोया सिक्का उसे नहीं मिला। मिलने के बाद चेहरे पर मुस्कान की रेखा आरी-तिरछी भाग रही थी। उम्र के बढ़ने के साथ जीवन हमें बस यही सिखाता है- खोना और पाना। आज मेरे दोस्त ने पिता को खो दिया था और मैंने अपने दोस्त की खुशी। अभी जगजीत सिंह की गायी गजल याद आ रही- आंसू छलक-छलक के सताएंगे रात भर, मोती-मोती पलक-पलक में पिरोया करेंगे हम...याद में रोया करेंगे....जुदा हो गए हम..