Sunday, September 14, 2025

हिंदी दिवस- दिनकर के गांव से !



राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि सिमरिया को एक साहित्यिक तीर्थभूमि के रूप में जाना जाता है। यहां की मिट्टी को नमन करने हर साल देश के नामचीन साहित्यकार, कवि, आलोचक, साहित्य प्रेमी आते हैं।
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इस हिंदी दिवस हमने सोचा कि उन गांवों की यात्रा की जाए, जिनसे अपनी हिंदी समृद्ध हुई है। हम निकल पड़े राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के गांव की ओर। बिहार के बेगूसराय जिला स्थित गंगा किनारे एक ऐसे गांव को देखने, जिसकी माटी में हिंदी रची बसी है।

आप कल्पना कीजिए एक ऐसे गांव की, जिसके हर घर पर कविता की कोई न कोई पंक्ति लिखी हो! क्या आपने कभी ऐसे किसी गांव की यात्रा की है, जिसके हर घर की दीवार पर काव्य पंक्तियाँ लिखी हुई हों।

सच कहूं, मुझे तो ऐसा गांव देखने का सौभाग्य मिला है। मैं मौजूद हूं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के गांव में, सिमरिया ग्राम में ! जिसके बारे में खुद दिनकर लिख गए हैं –
“ हे जन्मभूमि शत बार धन्य !
तुझसा न ‘सिमरियाघाट’ अन्य ”


सिमरिया गांव में रामधारी सिंह दिनकर का बचपन बीता। इस छोटे से गांव में पले बढ़े दिनकर का राष्ट्रकवि तक का सफर काफी रोचक और ज्ञानवर्द्धक है। राष्ट्रकवि दिनकर से जुड़ी यादों को सहेजने के लिए सिमरिया गांव के लोगों ने अनोखा उपाय ईजाद किया है।

दरअसल, यहां के लगभग सभी भवनों पर दिनकर का नाम है। सरकारी और गैर सरकारी भवनों पर दिनकर जी की रचनाएं और कविताएं उकेरी गई हैं। जैसे ही आप गांव में प्रवेश करेंगे, उनकी कविताओं को पढ़कर रोमांचित हो उठेंगे और तब आपको लगेगा कि जिनसे हिंदी अपनी समृद्ध हुई, उनकी हिंदी को उनका गांव असल में कितनी शिद्दत से जी रहा है।

हर साल दिनकर की स्मृति में उनकी जन्मभूमि के जिला मुख्यालय बेगूसराय में सरकारी कार्यक्रम होता है, जिसका अच्छा – खासा बजट है लेकिन उनके गांव में ग्रामीण सरकार के सहयोग से नहीं बल्कि जन सहयोग से कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

गांव घूमते हुए मैंने यह भी देखा कि सिमरिया का एक भी घर ऐसा नहीं था जिसकी दीवार पर दिनकर की काव्य पंक्तियाँ न लिखीं हों।

सितंबर महीने में दिनकर की स्मृति में आस-पास के स्कूलों में दिनकर काव्य प्रतियोगिता कराई जाती है और सफल विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया जाता है।

जब यह सब कुछ मुझे स्थानीय प्रवीण प्रियदर्शी जी बता रहे थे, मैं चुपचाप सुन रहा था और सोच रहा था कि काश भारत का हर गांव सिमरिया होता।

ग्रामीणों ने दिनकर जी की स्मृति में ‘राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति विकास समिति’ का गठन किया है। यह समिति हर साल 12 सितंबर से 24 सितंबर के बीच कार्यक्रम आयोजित करती है। सिमरिया के आसपास जितने भी स्कूल हैं, उनमें दिनकर साहित्य का प्रचार प्रसार किया जाता है और फिर एक प्रतियोगिता आयोजित की जाती है। पिछले साल इसमें 600 बच्चों ने हिस्सा लिया था।
 
गांव में दिनकर के नाम से एक समृद्ध पुस्तकालय भी है, जिसमें 20 हजार से अधिक किताबें हैं। इसका संचालन ग्रामीण करते हैं।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि दिनकर जयंती के अवसर पर सिमरिया गांव में आयोजित होने वाले कार्यक्रम का खर्च ग्रामीण उठाते हैं, जो भी अतिथि आते हैं, उनके आने जाने के खर्च से लेकर ठहरने तक का खर्च ग्रामीण वहन करते हैं।

अपने ग्रामीण कवि के नाम पर ये लोग सरकार से किसी तरह की सहायता नहीं लेते हैं।

इस हिंदी दिवस आप भी घूम आइए, अपने आसपास के हिंदी लेखकों के गांव, ताकि समझ सकें कि जिस हिंदी की हम बात कर रहे हैं, जिस हिंदी से देश चल रहा है, आखिर उस हिंदी को समृद्ध करने वाले का गांव किस मोड़ पर खड़ा है।   

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