इस मौसम की रात बड़ी अलग होती है। शाम ढलते ही अहाते में खड़ा हर पेड़, हर छोटा पौधा कुछ न कुछ सुनाता है। अभी कुछ टिकोले गिरने की आवाज़ सुनाई दी, धप्प!
नीम का किशोरवय पेड़ रात में इस कदर लगता है, मानो तैयार होकर कहीं निकलना हो। दिन भर की तपती गरमी के बाद हल्की सी हवा चली है, ऐसे में नीम की पत्तियाँ हिलती दिख रही है, मानो किसी ने बाल में कंघी कर दी हो!
फूलबाड़ी में सबसे अधिक इठलाती है बेली। इसे शाम से पहले चाहिए पेट भर पानी! प्यास मिट जाने के बाद शाम ढलते ही अहाते को खुशबू देने का काम बेली ही करती है। इस फूल की पत्तियाँ भी कम मोहक नहीं होती, मोटी लेकिन पान के छोटे पत्ते की तरह। फूल की तो बात ही छोड़िये, एक फूल को बस एक गिलास पानी में रख दीजिये!
उधर, कटहल का पेड़ मजबूती से खड़ा है, आसमां को निहार रहा है। इस पेड़ की टहनी फल के भार से झुकती नहीं है, और भी विनम्र हो जाती है फल देने के बाद। कोई चिड़ियाँ इस पेड़ पर आशियाना बनाई हुई है।
बगल में ही अमरूद का पेड़ है। इसमें फूल आया है, एकदम दूध की तरह सफेद। दिन में इस पेड़ को गिलहरियाँ घेरे रहती है। शाम से इसे आराम मिला है। अहाते की शांति में यह पेड़ चाँद - तारों से गुफ़्तगू कर रहा है।
दो बरख पहले अहाते में लीची का पौधा लगाया था, इस साल फल देने की तैयारी में है। चमगादर का एक झुंड साँझ में इसके आसपास मंडराने लगता है। लाल चिटियाँ भी इस पेड़ से चिपकी रहती हैं।
इस मौसम में गाम की रात कई चीजें सिखाती है। मक्का की तैयारी भी कहीं कहीं चल रही है। कहीं किसी मंदिर में लोगबाग गीत गा रहे हैं तो कहीं थ्रेसर से फसल की तैयारी चल रही है। कवि अरुण कमल की कविता ' एकालाप ' की यह पंक्ति याद आ रही है -
" आदमी धान का बिजड़ा तो नहीं
कि एक खेत से उखाड़ कर दूसरे में रोप दे कोई! "
1 comment:
दर असल आदमी (मनुष्य) की हालत धान के बिजड़े से भी गई-बीती है। यह अपने जीवन में कई बार उखाड़ा और रोपा जाता है। ससुराल जाती लड़की हो या प्रवासी मजदूर, सरकारी नौकर हो या सेना का जवान। ये सब जहां पैदा होते हैं वहाँ जम कहाँ पाते हैं। उदाहरण और भी हैं। बस सोचते जाइए।
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