किताबों के साथ हम सभी का रिश्ता रहा है। हम उस रिश्ते को हर उम्र में नए सिरे से अनुभव करते हैं। तकनीकी दौर में भी यह रिश्ता कमजोर नहीं हुआ है। हम सभी के घरों में किताबों का एक ठिकाना जरूर रहता है, जहाँ पहुँचकर हम सभी पन्नों में लिखे शब्दों की दुनिया में खो जाते हैं। एक वक्त था जब गाँव-गाँव में लाइब्रेरी हुआ करती थी, लोगबाग वहाँ जाते थे लेकिन समय की तेज रफ्तार में ऐसी जगहें कम होने लगी। ऐसे दौर में जब देश के अलग-अलग हिस्सों में विकास का मतलब निर्माण कार्यों को समझा जाने लगा है, ऐसे वक्त में कोई जिला यदि किताबों की बात करता है तो उसके मर्म को समझने की जरूरत है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राहुल कुमार बिहार के पूर्णिया
जिला में कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। साल 2020 के जनवरी महीने में पूर्णिया के जिलाधिकारी
राहुल कुमार ने एक अभियान की शुरुआत की थी- ‘अभियान किताब दान’। कोराना
महामारी की वजह से यह अनोखा अभियान प्रभावित हुआ लेकिन इसके बावजूद लोगों ने 61000
किताबें इस अभियान में दान दी। और साल 2021 में इस अभियान को मूर्त रूप देने की
शुरूआत राहुल कुमार ने कर दी है। 25 जनवरी को जिला के परोरा गाँव में राहुल कुमार
ने एक पुस्तकालय की शुरूआत की, जिसमें इस अभियान से प्राप्त किताबों को रखा गया
है।
मुझे याद है, 25 जनवरी 2020 को इस अभियान की जब शुरूआत हुई थी तो
पहले दिन ही 400 किताबें प्राप्त हुई थी। जिला के समाहरणालय सभागार में किताब दान
अभियान की शुरूआत हुई थी। राहुल कुमार ने उस दिन भी कहा था कि यह अभियान लोगों का
है, इसमें हर कोई सहयोग करेगा और आज एक साल बाद जब परोरा गाँव में वह लोगों के बीच
थे, उस वक्त भी उन्होंने यही बात दोहरायी।
दरअसल हम सभी के घरों में ऐसी ढेर सारी किताबें होती है, जिसे हम पढ़
चुके होते हैं और वह रखी रह जाती है। ऐसी किताबों को हम लाइब्रेरी तक पहुँचा सकते
हैं ताकि शब्द की यात्रा जारी रहे। पूर्णिया के जिलाधिकारी का यह अभियान हमें
बताता है कि गाँव-गाँव
में किताबों का एक सुंदर सा ठिकाना बनना चाहिए। उनका कहना भी है कि जिला के हर
पंचायत में एक मिनी लाइब्रेरी शुरू होगी। जिले में अब तक अभियान किताब दान के तहत 61
हजार पुस्तकें प्राप्त हुई है। इन पुस्तकों से पंचायतों में मिनी पुस्तकालय
खोलने का सुझाव दिया गया है। जहाँ पंचायत सरकार भवन है वहाँ तथा अन्य भवनों में
जगह देखी जा रही है। इसके लिए एक समिति भी बनाई जाएगी, जो पुस्तकालय की देख-रेख कर सकेगी।
पूर्णिया जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित परोरा
गाँव में आज जब पंचायत भवन परिसर में लाइब्रेरी की शुरूआत हुई तो लगा बदलाव इस तरह
भी लाया जा सकता है। जब भी किसी गाँव के ग्राम पंचायत भवन के परिसर में जाता हूँ
तो सबसे पहले मन में गाँधी की छवि ही आती है। बापू ने ‘मेरे सपनों का भारत’ में
पंचायती राज के बारे में जो विचार व्यक्त किये हैं वे आज वास्तविकता के धरातल
पर साकार हो चुके है क्योंकि देश में समान तीन-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था
लागू हो चुकी है जिसमें हर एक गाँव
को अपने पांव पर खड़े होने का अवसर मिल रहा है। बापू का मानना था कि जब पंचायती
राज स्थापित हो जायेगा तब लोकमत ऐसे भी अनेक काम कर दिखायेगा, जो हिंसा कभी भी नहीं कर सकती। आज
परोरा गाँव में लाइब्रेरी के बहाने बापू की लिखी बातें भी याद आने लगी।
कभी कभी सोचता हूँ कि जिला की कमान संभालने वाले अधिकारी को लोगबाग ढेर सारे विकास कार्यक्रमों, भवनों या अन्य सरकारी परियोजनाओं के लिए याद करते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जिन्हें लोग बदलाव के लिए याद करते हैं। किताब दान अभियान की शुरूआत करने वाले राहुल कुमार ऐसे ही लोगों में एक हैं। पूर्णिया में गाँव -गाँव तक पुस्तकालय पहुँचाने का उनका अभियान दरअसल पूर्णिया के जन-जन का अभियान है। लोगबाग अपनी आदतों में किताब को शामिल करें, इससे बेहतर और क्या हो सकता है।
आज जब परोरा गाँव से लौट रहा था तो सोचने लगा कि ‘किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से, बड़ी हसरत से तकती हैं....’ लिखने वाले गुलज़ार काश पूर्णिया आते और गाँव के किसी लाइब्रेरी में पढ़ते लोगों को देखते तो फिर यह नहीं कहते ‘बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें..’
यदि आप भी किताब दान करना चाहते हैं तो जिला शिक्षा पदाधिकारी पूर्णिया के कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं, नंबर है- 8544411773
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