यह गांव का सम्मान है, यह सम्मान चनका का है। यह सम्मान उस व्यक्ति के नाम पर है, जो महानगर की चकाचौंध में रहकर भी गाम - घर का बना रहा। उनके नाम पर ' सम्पूर्ण ग्रामीण विकास ' के लिए सम्मानित होना, गर्व की बात है लेकिन वहीं दूसरी ओर एक चुनौती भी है, जिसके संग गाम - घर का संपूर्ण विकास जुड़ा है।
नरेंद्र झा हमारे माटी के अभिनेता थे। वे जब तक रहे, हंसते रहे, हम सब से जुड़े रहे। जड़ से जुड़ा रहना क्या होता है, हम उनके जीवन से सीख सकते हैं।
मधुबनी शहर में १४ मार्च को नरेंद्र झा की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम में लोगों की आंखें बता रही थी कि वे सबके मन के करीब रहे। उनका गाम कोइलख उनके साथ हमेशा रहा। मैथिली में उक्ति है - "यश-अपयश हो, लाभ-हानि हो सुख हो अथवा शोक, सभ सँ' पहिने मोन पडैत अछि, अपने भूमिक लोक। “ नरेंद्र झा की स्मृति में पंकजा ठाकुर जी ने १४ मार्च को जो कुछ भी किया, उसमें नरेंद्र भाईजी साकार होकर इसी मैथिली उक्ति की तरह हमारे सामने आए।
नरेंद्र झा की उपस्थिति मेरे लिए भूमिपुत्र की भांति रही है। उनका चेहरा, चेहरे पे निश्छल मुस्कान , हम सब के मन में हमेशा बना रहता है। इस मुस्कान के पीछे उनकी अनवरत मेहनत है, इस मुस्कान के पीछे उनका अपना गाम कोइलख है।
नरेंद्र झा अचानक यात्रा पर निकल गए, यह सोचकर दुख होता है लेकिन यही यात्रा सत्य है, बाद बाकी तो माया है। यह सम्मान यदि उनके हाथ से मिलता तो लगता, हां, सही में गाम - घर के लिए थोड़ा ही सही लेकिन कुछ कर रहा हूं। नरेंद्र भाईजी मिथिला की बोली - बानी - माटी के नायक थे। नरेंद्र झा ने अपने करियर में रंग भरे वो कभी मिटने वाले नहीं है। वे हमेशा बने रहेंगे...
2 comments:
नरेंद्र सच में ही माटी के पुत्र थे | इनका यूं अचानक चले जाना बहुत ही दुखदायी रहा | आपको शुभकामनायें भाई
बहुत बहुत बधाई, सर।
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