Friday, August 18, 2017

बाढ़ के बीच बांध

अभी पूर्णिया के आसपास के बाढ़ प्रभावित कुछ इलाक़ों से लौटकर आया हूं। राहत शिविर गया था। पटना से कुछ मित्र राहत कार्य में जुट गए हैं। व्हाट्सएप ग्रुप के ज़रिए सभी एक दूसरे से जुड़े हैं।

उधर, सौरा नदी में पानी घटा है। पामर बाँध भी सुरक्षित है। लेकिन जिनका घर डूबा है, उनका दर्द कोई साझा नहीं कर सकता। यह तस्वीर पूर्णिया सिटी की है। सौरा ने जब अपना रूप विस्तार किया तो घर-आँगन-दुआर सबको अपने भीतर रख लिया। इस घर को भी सौरा नदी ने अपने भीतर कर लिया है।

पामर बाँध पर भैंस चरा रहे एक बुज़ुर्ग मिले, नाम था रामचरण। उन्होंने कहा-" बाँध से सटाकर नदी के पेट में दुआर बनाइएगा तो भला सौरा क्यों ख़ुश होगी? नदी का रास्ता रोकिएगा तो नदी ग़ुस्सा करेगी ही न! नदी को दीयाद नहीं सुहाता है।किसी का माथा थिर नहीं रहा अब। "

सूरज डूब चुका है। मैं इस बाँध से रिक़ाबगंज निकलना चाहता हूं, जहाँ एक राहत शिविर है। लेकिन नज़र सौरा पर है। पानी कम हुआ, इसलिए उम्मीद है कि यह नदी अब मान जाएगी..अंधेरे के बीच उस भैंसवार की बात याद आने लगती है।

वीरान धरती का रंग बदलेगा, यही आशा है। बाँध के पश्चिम एक बस्ती है, लालटेन की रौशनी आ रही है। नज़दीक पहुँचता हूं तो एक गीत सुनाई देती है-
"पगली माँ केर कौन भरोसा..."

#BiharFlood

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