पूर्णिया से किशनगंज जाने के रास्ते में डगरुआ इलाका आता है। यहीं है एक जगह है -लालबालू। बाढ़ के कारण पिछले चार दिनों इस रास्ते से वाहनों की आवाजाही बंद थी। दरअसल यही वह रास्ता जो हमें पूर्वोत्तर भारत से जोड़ता है। बीते कल पूर्णिया पुलिस ने इस रूट को वाहनों की आवाजाही के दुरुस्त कर दिया है।
बाढ़ की वजह से सड़क के दोनों तरफ़ बस पानी ही पानी है। मटमैला पानी और उसमें बहाव, इसे देखकर ही आप बाढ़ के तांडव का अंदाज़ा लगा पाएँगे। यह इलाक़ा फोर-लेन सड़क पर स्थित है। डिवाइडर पर बाढ़ पीड़ितों ने आशियाना बना लिया है, जिस वजह से आप सभी लेन से गाड़ी नहीं निकाल सकते। यहीं हमारी मुलाक़ात श्रवण से होती है। उनका सबकुछ डूब चुका है। वे तीन दिनों से राहत शिविर में लेकिन मन उसी घर में बना हुआ है, जहाँ उनकी गृहस्थी थी। हमने अपने स्तर से श्रवण को समझाया कि सब सामान्य हो जाएगा..
यहीं एक विश्वास टोला है। छोटी सी बस्ती , जिसके दोनों तरफ़ पानी का बहाव। सबके चेहरे पर भय दिख रहा था। वहाँ एक बुज़ुर्ग इरशाद चाचा मिले। उन्होंने कहा कि "यहाँ क्यों आएँ हैं? घर लौट जाइए.." बाढ़ जब आती है तो पानी के संग एक ऐसे भय का प्रसार कर देती है, जिसमें ठहरने की कोई गुंजाइश नहीं होती, आपको निकल जाना पड़ता है।
हम आगे निकल पड़े। हरखोली पंचायत की तरफ़। पता चला सब पानी -पानी है। वहाँ पहुँचना मुश्किल है। हाईवे पर सलीम भाई मिले, जिनका घर चनमाठी गाँव में है। पानी की वजह से वे सड़क पर आ गए हैं।
देश के अन्य हिस्सों को पूर्वोत्तर से जोड़ने वाली यह सड़क अब बस्ती की तरह दिखने लगी है। पोलिथिन के सहारे तंबू बनाया जा रहा है। प्रशासन की कोई भी गाड़ी देखकर इन बाढ़ पीड़ितों की आँखें चमक उठती है।
हमसे जितना बन पड़ा, सहायता पहुँचाकर लौट आए। भीतर अपना भी मन भिंगा हुआ है। पूर्णिया शहर में स्थित कप्तान पुल के पास कटान शुरू हुआ था हालाँकि प्रशासन की तत्परता से उसे बचा लिया गया लेकिन सौरा नदी अभी भी बौराई हुई है। शहर की सीमा पर स्थित बाघमारा में भी अलर्ट है। आपदा की इस घड़ी में धैर्य और साहस की सबसे अधिक ज़रूरत है। अफ़वाह से भी हमें बचना होगा।
#BiharFlood
बाढ़ की वजह से सड़क के दोनों तरफ़ बस पानी ही पानी है। मटमैला पानी और उसमें बहाव, इसे देखकर ही आप बाढ़ के तांडव का अंदाज़ा लगा पाएँगे। यह इलाक़ा फोर-लेन सड़क पर स्थित है। डिवाइडर पर बाढ़ पीड़ितों ने आशियाना बना लिया है, जिस वजह से आप सभी लेन से गाड़ी नहीं निकाल सकते। यहीं हमारी मुलाक़ात श्रवण से होती है। उनका सबकुछ डूब चुका है। वे तीन दिनों से राहत शिविर में लेकिन मन उसी घर में बना हुआ है, जहाँ उनकी गृहस्थी थी। हमने अपने स्तर से श्रवण को समझाया कि सब सामान्य हो जाएगा..
यहीं एक विश्वास टोला है। छोटी सी बस्ती , जिसके दोनों तरफ़ पानी का बहाव। सबके चेहरे पर भय दिख रहा था। वहाँ एक बुज़ुर्ग इरशाद चाचा मिले। उन्होंने कहा कि "यहाँ क्यों आएँ हैं? घर लौट जाइए.." बाढ़ जब आती है तो पानी के संग एक ऐसे भय का प्रसार कर देती है, जिसमें ठहरने की कोई गुंजाइश नहीं होती, आपको निकल जाना पड़ता है।
हम आगे निकल पड़े। हरखोली पंचायत की तरफ़। पता चला सब पानी -पानी है। वहाँ पहुँचना मुश्किल है। हाईवे पर सलीम भाई मिले, जिनका घर चनमाठी गाँव में है। पानी की वजह से वे सड़क पर आ गए हैं।
देश के अन्य हिस्सों को पूर्वोत्तर से जोड़ने वाली यह सड़क अब बस्ती की तरह दिखने लगी है। पोलिथिन के सहारे तंबू बनाया जा रहा है। प्रशासन की कोई भी गाड़ी देखकर इन बाढ़ पीड़ितों की आँखें चमक उठती है।
हमसे जितना बन पड़ा, सहायता पहुँचाकर लौट आए। भीतर अपना भी मन भिंगा हुआ है। पूर्णिया शहर में स्थित कप्तान पुल के पास कटान शुरू हुआ था हालाँकि प्रशासन की तत्परता से उसे बचा लिया गया लेकिन सौरा नदी अभी भी बौराई हुई है। शहर की सीमा पर स्थित बाघमारा में भी अलर्ट है। आपदा की इस घड़ी में धैर्य और साहस की सबसे अधिक ज़रूरत है। अफ़वाह से भी हमें बचना होगा।
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