"हम मारे छी मुक्का कपाड़ में
हमर किस्मत फुटल
नदी कऽ धार में.."
सौरा नदी, जो पूर्णिया के बीच से गुज़रती है।इसी नदी के किनारे पुराने पूर्णिया शहर में काली मंदिर है, जहाँ आज पानी-पानी है। यही एक बुज़ुर्ग से मुलाक़ात हुई और उन्होंने यह गीत सुनाया। गीत सुनकर रात के अंधेरे में मन के भीतर एक घुप्प अँधेरा छा गया। पता नहीं क़िस्मत को लेकर हम कबतक गीत में डूबे रहेंगे। हालाँकि यह भी सच है कि प्रकृति और मौसम की मार के सामने किसी का कुछ नहीं चलता है।
आज शाम से देर रात तक पूर्णिया के आसपास के बाढ़ प्रभावित इलाक़ों में घुमता रहा। राहत कार्य में लगे लोगों से मिलता रहा, वहीं ज़िला मुख्यालय में बनाए गए केंद्रों में राहत सामग्री पैक करते लोगों और अधिकारियों की मेहनत देखी। अभी जब घर लौटा हूं तो सोच रहा हूं कि बाढ़ पीड़ित और पीड़ितों के राहत सामग्री पैक कर रहे लोग किस विश्वास और भरोसे के संग रात गुज़ार रहे होंगे। पूर्णिया के डीएम प्रदीप कुमार झा और पुलिस अधीक्षक निशांत कुमार तिवारी प्रभावित गाँव बेलगच्छी के एक राहत शिविर में हैं। हर कोई अपने स्तर से काम कर रहा है।
उधर, आज बाढ़ का पानी बेचैन लगा, उसे शहर में दाख़िल होना है शायद! पानी को कौन बाँध सकता है! बाघमारा में एक बाँध है, ' पामर बाँध'। यहाँ के एक राजपरिवार का अंग्रेज़ मैनेजर था पामर। उसी ने पूर्णिया की सीमा पर बाँध बनाया था। आज रात उस बाँध को सौरा नदी छूने को बेताब दिखी वहीं लोगबाग बाँध और सड़क को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
चारों तरफ़ हाहाकार है, भय का वातावरण है। शहर के लोग बाढ़ की आहट से परेशान हैं वहीं ग्रामीण इलाक़ों में बाढ़ ने लोगों को कहीं का नहीं छोड़ा है। अपने स्तर से जितना कुछ हो पा रहा है, कर रहा हूं।
आज की रात आँखों से नींद ग़ायब है। बाढ़ का पानी मन के भीतर बह रहा है। एक बाँध मन के भीतर भी होता है, जो आज शाम टूट गया। वे लोग आँखों के सामने हैं जो बाँध की निगरानी में खड़े थे, वे लोग जो सड़क को कटाव से बचाने के लिए मुश्तैद हैं.. और राहत शिविर का वह बच्चा, जिसे बस बिस्कुट चाहिए ...
#BiharFlood
हमर किस्मत फुटल
नदी कऽ धार में.."
सौरा नदी, जो पूर्णिया के बीच से गुज़रती है।इसी नदी के किनारे पुराने पूर्णिया शहर में काली मंदिर है, जहाँ आज पानी-पानी है। यही एक बुज़ुर्ग से मुलाक़ात हुई और उन्होंने यह गीत सुनाया। गीत सुनकर रात के अंधेरे में मन के भीतर एक घुप्प अँधेरा छा गया। पता नहीं क़िस्मत को लेकर हम कबतक गीत में डूबे रहेंगे। हालाँकि यह भी सच है कि प्रकृति और मौसम की मार के सामने किसी का कुछ नहीं चलता है।
आज शाम से देर रात तक पूर्णिया के आसपास के बाढ़ प्रभावित इलाक़ों में घुमता रहा। राहत कार्य में लगे लोगों से मिलता रहा, वहीं ज़िला मुख्यालय में बनाए गए केंद्रों में राहत सामग्री पैक करते लोगों और अधिकारियों की मेहनत देखी। अभी जब घर लौटा हूं तो सोच रहा हूं कि बाढ़ पीड़ित और पीड़ितों के राहत सामग्री पैक कर रहे लोग किस विश्वास और भरोसे के संग रात गुज़ार रहे होंगे। पूर्णिया के डीएम प्रदीप कुमार झा और पुलिस अधीक्षक निशांत कुमार तिवारी प्रभावित गाँव बेलगच्छी के एक राहत शिविर में हैं। हर कोई अपने स्तर से काम कर रहा है।
उधर, आज बाढ़ का पानी बेचैन लगा, उसे शहर में दाख़िल होना है शायद! पानी को कौन बाँध सकता है! बाघमारा में एक बाँध है, ' पामर बाँध'। यहाँ के एक राजपरिवार का अंग्रेज़ मैनेजर था पामर। उसी ने पूर्णिया की सीमा पर बाँध बनाया था। आज रात उस बाँध को सौरा नदी छूने को बेताब दिखी वहीं लोगबाग बाँध और सड़क को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
चारों तरफ़ हाहाकार है, भय का वातावरण है। शहर के लोग बाढ़ की आहट से परेशान हैं वहीं ग्रामीण इलाक़ों में बाढ़ ने लोगों को कहीं का नहीं छोड़ा है। अपने स्तर से जितना कुछ हो पा रहा है, कर रहा हूं।
आज की रात आँखों से नींद ग़ायब है। बाढ़ का पानी मन के भीतर बह रहा है। एक बाँध मन के भीतर भी होता है, जो आज शाम टूट गया। वे लोग आँखों के सामने हैं जो बाँध की निगरानी में खड़े थे, वे लोग जो सड़क को कटाव से बचाने के लिए मुश्तैद हैं.. और राहत शिविर का वह बच्चा, जिसे बस बिस्कुट चाहिए ...
#BiharFlood
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