Tuesday, August 22, 2017

बाढ़ से बचाव के लिए नदी से मिलना होगा -1

बिहार के सीमांचल इलाके में बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है। अररिया और
फारबिसगंज इलाका सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। पूर्णिया के आसपास के इलाकों में भी बाढ़ का पानी प्रवेश कर चुका था। अब जब बाढ़ का पानी उतर चुका तब स्थिति और भी भयानक दिखने लगी है। लेकिन इन सबके बीच में हम नदियों को लेकर बातें कम करने लगे हैं। नदियों को हमने नाला समझ लिया था, नदियों के पेट में हमने मकान खड़े कर दिए। 1911 में आईसीएस ऑफिसर एल एस एस मैली ने पूर्णिया जिला का पहला गजेटियर प्रकाशित किया था। तब पूर्णिया जिला की सीमा विशाल थी, दूर दूर तक। हमने इस किताब के आधार पर पूर्णिया-अररिया की नदी-धार को समझने की कोशिश की है। 

अररिया अब जिला बन चुका है। इस बार बाढ़ में अररिया को भारी क्षति पहुंची है। यहां नदियों के बारे में लोगों ने बातें करना छोड़ दिया था। लेकिन वे भूल गए थे कि जिसे नाला समझा जा रहा है वो तो नदी है।

दरअसल पुराने पूर्णिया जिला के विभिन्न नदियों की कहानी बड़ी रोचक है।पहले हमें इन नदियों की कहानियां सुनाई जाती थी लेकिन विगत दो-तीन दशकों
में कोई किसी को नदी की कहानी नहीं सुना रहा है। ऐसे में हम नदी को
पहचाना भूल गए।

एक नदी है देवनी। यह महानंदा-कनकई नदी की एक उपधारा है। एक जमाने में यह ताकतवर नदी हुआ करती थी। फ्रांसिस बुकानन ने लिखा है कि इस नदी का स्रोत नेपाल में था जो अररिया होते हुए पूर्णिया की सीमा में दाखिल होती है और फिर किशनगंज की तरफ मुड़ते हुए महानंदा और कनकई में मिलती है। 

आज जब पूर्णिया के डगरुआ इलाके को आप देखेंगे तो लगेगा कि हमने किस तरह देवनी नदी को नजरंदाज कर दिया और इस बार यही नदी रुठकर हमें बाढ़ के जरिए रुलाने लगी।

बाढ़ के दौरान इसी तरह जब हम पूर्णिया से कसबा की तरइ निकले तो कई
रियाहशी इलाके जलमग्न दिखे। कसबा के पूरब होते हुए पूर्णिया सिटी से
दक्षिण एक नाले से पानी गुजरती थी लेकिन इस बार वह नदी दिख रही थी।
पूर्णिया गजेटियर  में यह इच्छामती नदी है।

वैसे सच यह है कि इस बार हमने जिस नदी को समझने में सबसे अधिक भूल की, वह है सौरा। एक अंग्रेज विद्वान फ्रांसिस बुकानन हुए। उन्होंने  1810 के आसपास पूर्णिया का व्यापक अध्ययन किया। हालांकि वे पेशे से चिकित्सक थे लेकिन वे प्रसिद्ध हुए सर्वेक्षक के तौर पर। उन्होंने पूर्णिया का विस्तृत और व्यापक सर्वेक्षण
किया था। बुकानन ने सौरा नदी को समीरा लिखा है। 

सौरा का उद्गम फणीश्वर नाथ रेणु के गांव औराही हिंगना से पूरब है। यहां अहमदपुर चौर है, जिसकाu क्षेत्रफल करीब 1500 एकड़ है। यहीं से सौरा का जन्म होता है। आगे निकलते ही बूढ़ी कोसी, कारी कोसी, दुलारदेई, पेमा, सीतावगजान, सरसुनी, कजला, कमला, कमताहा जैसी धाराएं सौरा की सहायक बन जाती है और इस बार इन्हीं धाराओं ने तांडव मचाकर रख दिया। जिसके बारे हम बात भी नहीं कर रहे थे। 

अहमदपुर से चौर से निकलने के बाद सौराअररिया-रानीगंज स्टेट हाइवे पर रजखोर से पश्चिम सड़क को पार करती है। इसी के समानांतर गीतवास के गांव के पास दुलारदेई नामक नदी है। 

सौरा और दुलारदेई के बीच तकरीबन एक दर्जन पुरानी धाराएं हैं। इन्हीं धाराओं से
होकर ही कभी कोसी की प्रमुख धारा प्रवाहित होती थी, जिसका नाम कजरा है। अब आप समझ गए होंगे कि इस बार बाढ़ से हुई तबाही की वजह क्या थी। यही सारी धाराएं इस बार आक्रमक हो गईं।

 बाढ़ के दौरान अररिया में कई इलाक़ों का सम्पर्क जिला मुख्यालय से टूट गया। इसके लिए हमें बूढ़ी कोसी नदी को समझना होगा। दरअसल बूढ़ी कोसी पूरब की ओर से बहते हुए अररिया जीरो माइल से पूरब जोकीहाट स्टेटहाइवे को पार करती है तथा बेलवा दियारी मजगामा, बागनगर , जलालगढ़,गढ़बनैली से आगे बहते हुए कसबा के निकट पश्चिम दिशा में मुड़कर फोरलेन सड़क को पार करती है। कसबा से दक्षिण पश्चिम में इसका मिलन सौरा से हो जाता है। हमने सड़क का जाल बिछाते वक़्त नदियों को नज़रअन्दाज़ किया और जब इस बार नदियों ने पानी से सब सीमाओं को जोड़ दिया तब हमें दिक़्क़त होने लगी। इसलिए  अब हमें नदियों से मिलना होगा, उसे समझना होगा। 

(जारी है..)


1 comment:

pushpendra dwivedi said...

bahut behtareelekh