Thursday, June 08, 2017

खेत-खलिहान और चिड़ियाँ

दूर दूर तक खेत। खेतों में कदम्ब के  पेड़। हल्की हवा। दस दिनों तक झुलसा देने वाली धूप के बाद आज सुबह से बादलों ने डेरा जमा लिया है, बरखा की आशा है। खेत और सब्ज़ी को पानी चाहिए। यदि बारिश होती है तो फूल-पत्तियों को ख़ुशी मिलेगी। पूर्णिया ज़िले  के आसपास के इलाक़ों में सुबह में बारिश हुई थी,  ऐसे में आशा के बादल इधर भी मँडराने लगे हैं।

घर के आगे मक्का के बाद सूने पड़े खेतों को देख रहा हूं। खेत में गाय-भैंस चर रहे हैं। हवा के झोंकों में बांस के झुरमुट की सुंदरता देखने लायक बन रही है। किशोरवय बाँस का हवा में मदमस्त होकर झूमना, मानो कोई शास्त्रीय गायक अलाप  ले रहा हो। मन में कुमार गंधर्व की छवि उभर आती है। हमारे इलाक़े में शास्त्रीय संगीत के 'देव गायक' हुए-राजकुमार श्यामानंद सिंह।  आज सुबह गाँव में चुपचाप बैठकर जब खेत-खलिहान को निहार रहा हूं ,  तब कई छवियाँ मन में उभरने लगी है।

उधर, गाछ में कुछ पके आम दिख रहे हैं। वैसे आम इस बार  बस कहने  के ही हैं। एक चिड़ियां गच्छ पक्कू आम के पीलापन पर मोहित होकर उसपर चोंच साफ़ कर रही है। यह चिड़ियाँ और कोई नहीं सुग्गा है, एकदम हरियर , गले में काले रंग की रेखा।

पहाड़ी मैना की आवाज, कचबचिया चिड़ैयां का आना फिर झुण्ड बनाकर चैं-चैं करना तभी कटहल के पेड़ पर बैठा नीलकंठ चुप्पी साध लेता है।हमारे इलाक़े में नीलकंठ चिड़ियाँ ख़ूब है।  नीलकंठ चिड़ियाँ की नज़र खेत में घूमते हरहरा सांप पर है। नीलकंठ की नज़र शिकारी की तरह है वहीं हरहरा सांप की नजर मेढक पर। जीवन यही है, हर कोई अपनी अपनी जुगत में होता है।

कुआँ के पास छोटा सा गड्ढा है, जिसमें पानी लगा है। पीले रंग की पहाड़ी चिड़ियाँ' चिरेना' उसमें नहा रही है।

नारियल की फुनगी पर करीब एक दर्जन सुग्गा। हरे पत्तों पर हरियर तोता ! सभी का समवेत स्वर में चिहुकना। संगीत की तरह आवाज में मिठास। एक जोड़ा किंगफ़िशर अहाते में दाख़िल होता है। बिजली के तार पर बैठता है और फिर अचानक फुर्र !

वहीं बनमुर्गी पुराने पोखर में चहलकदमी कर रही है। दो बन-बत्तख आपस में झगड़ते हुए आते हैं लेकिन सिल्ली को देखकर चैं-चैं उनका बंद हो जाता है।

मुझे सिल्ली नाम की चिड़ियाँ झुंड में पसंद है। उसे देखने घर से बाहर निकल जाता हूं।घर के पूरब धार में सिल्ली झुण्ड में है। जल की आश में लंबी दूरी तय करके आई है शायद। संग में कुछ और चिडैयां आई है नेपाल से। कुछ पीले रंग की कुछ इंक की तरह नीले रंग में नहाई। सब पानी में छै-छप-छै करने में जुटी है। लेकिन धार , में पानी बहुत कम है। चिड़ियाँ सब मेघ देख रही है, हमारी तरह।

इन सबके बीच धन रोपनी के लिए जुताई किये गए खेत में बगुले आए हैं। बग़ूलों की नज़र कीडों पर है। बको-ध्यानम की मुद्रा में  वे घंटों खड़े हैं।

बगुले की सफेदी और खेत का मटमैलापन ...मानो धरती मैया ने एक स्केच तैयार कर दिया हो। कि तभी एक बगुले को मिल जाता है एक बड़ा फतिंगा और उसे लेकर बगुला फुर्र..

काली गाय को बाछा हुआ है। खेत चरते हुए बाछा भी उसके साथ है। बाछा पर माँ की नजर बनी है। तभी एक मैना बाछा को तंग करने लगती है। गाय यह देखकर मेमिया उठती है और मैना भी उड़ जाती है। खेत के आल पर बकरियाँ हैं, काले - उजले रंग की...

दूर कहीं से लाउडस्पीकर की आवाज आ रही है। शायद गाम से पूरब कहीं अष्टजाम हो रहा है। गाँव से दूर पक्की सड़क से फटफट की आवाज भी कानों तक पहुँच रही है। यह सब देखते -लिखते बाबूजी की छवि मन में बन जाती है। उन्हीं की तरह धोती पहनने का मन करने लगता है। बाबूजी को गए अब दो साल होने जा रहे हैं। इन्हीं खेतों में अक्सर वे मिल जाते हैं। किसानी और क़लम स्याही करते हुए आज यही सब लिखने का मन कर रहा है, पक्षियों की तरह आज़ाद होने का मन कर रहा है।

#ChankaResidency

No comments: