90 का दशक, बिहार और देश के लगभग हर हिस्से में एक नेता की चर्चा हो रही थी, वह थे लालू यादव। राजनीति में लालू का वह स्वर्णिम काल था। इस दौरान वे एक बार लंदन गए। लंदन से बिहार वापसी में जब वे पटना एयरपोर्ट पहुंचे तो वहां अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा था- क्या आप सब जानते हैं कि मैं कहा गया था? मैं लंदन में बीबीसी के ऑफिस गया था। दरअसल हिंदी पट्टी के लिए बीबीसी समाचारों के लिए खास मायने रखता है। इसकी ट्यूनिंग पर राजनीतिक विमर्श होते हैं। शायद लोगों की इसी नज्ब को पहचानते हुए लालू ने यह बयान दिया था। आज जब यह खबर पढ़ने को मिली कि मार्च के अंत तक बीबीसी हिंदी रेडियो के प्रसारण बंद हो जाएंगे, तो कई यादें एक साथ सिल्वर स्क्रीन की तरह आंखों के सामने नाचने लगी।
कई सालों तक बीबीसी हिंदी प्रसारण खबरों का मुख्य स्रोत हुआ करती थी। लेकिन अब एक अप्रैल से ऐसा नहीं होगा। बीबीसी की बुधवार को कि गई घोषणा में स्पष्ट रूप से कहा गया कि कटौती की वजह से वह एक अप्रैल से हिंदी समाचार प्रसारण सेवा को बंद कर देगी। इंडियन एक्सप्रेस में एक रिपोर्ट में अचला शर्मा (बीबीसी हिंदी सेवा की पूर्व प्रमुख) का बयान प्रकाशित हुआ है, जिसमें उन्होंने कहा, यह एक संस्थान की मौत है...मैंने जबसे यह खबर सुनी, सदमे में हूं... ।
मुझे याद है बचपन में हर खबर के लिए घर पर सभी बीबीसी पर ही आश्रित थे। सुबह साढे छह बजे का कार्यक्रम बाबूजी छोड़ते नहीं थे। काफी दिनों तक दोपहर में 15 मिनट का एक प्रोग्राम आता था, जिसमें सभी ताजातरीन खबरें सुनने को मिलती थी। खाने के दौरान रेडियो पर सामाचार सुना करते थे। चिट्ठियों से खास लगाव भी बीबीसी की ही देन है। देश भर में फैले बीबीसी संवाददाताओं के नाम अभी याद हैं। पटना के मणिकांत ठाकुर हों या फिर लखनऊ से रामदत्त त्रिपाठी। अचला शर्मा की आवाज तो आज भी कानों में गूंजती है। सुबह में जब यह सुनने को मिलता कि अभी लंदन में ...बज रहे हैं और दिल्ली में... तो सरहद की सारी दूरिया शार्ट वेव में बंट जाती थी। आज बीबीसी ऑनलाइन पर जब यह खबर पढ़ने को मिली कि हिंदी सेवा के शार्टवेव पर प्रसारण बंद होंगे तो मैं फ्लैशबेक में चला गया।
1 comment:
आकाशवाणी की कवरेज रेंज तो बहुत है इस पर बहुत कुछ फ़िल्टर होकर आता रहा है जबकि बी.बी.सी. अपनी बेबाक कवरेज के लिए जानी जाती रही है. बी.बी.सी. पहले भी घोर आर्थिक कारणों के चलते कई बार इसी प्रकार के दबाव सहती आई है पर हिन्दी सेबा का अंतत: बंद होना नि:संदेह दु:खद है. अचला शर्मा जी कभी दिल्ली युववाणी पर हुआ करती थीं और हम लोग कालेजों से आने वाले शौकिया हुआ करते थे... इनका यह कहना एकदम दुरूस्त है कि यह एक institution का अंत है.
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