Monday, September 07, 2009

अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो - गुलजार


अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी,
अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे हैं।
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म,
अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है.


यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
पेंटिग- रविन्द्र व्यास/ साभार प्रतिलिपी डॉट इन

1 comment:

Yunus Khan said...

गिरींद्र ये रचना हेमंत कुमार की आवाज में भी है और जे के बैनर्जी की आवाज में भी । रेडियोवाणी पर इसे कभी चढ़ाया था । दरअसल रेडियोवाणी पर दो गीतों की जोड़ी पेश करने का इरादा लंबे समय से है । एक तो अभी ना परदा गिराओ और दूसरा हेमंत दा का ही गाया अभी परदा गिराओ ।
सोचो कि गीतों की ये जोड़ी कैसी होगी ।