Tuesday, August 04, 2009

चलिए कुछ कदम साथ चलते हैं

चलिए कुछ कदम साथ चलते हैं,
वैसे भी साथ चले कई दिन हो गए।

शाम अभी मुझे ठहरी लगती है,
चलिए कुछ देर और हाथों में हाथ थामते हैं।

दूर सड़क पर लोग नजरें झुकाए चल रहे हैं,
चलिए हम अपनी नजरें उठाकर चलते हैं।

बारिश के बाद सड़कों से यहां सोंधी महक नहीं आती
अब तो गांव में भी मिट्टी कम कंक्रीट ज्यादा दिखती हैं।

चलिए एक बार फिर से आपसे बात करते हैं,
कई दिन हो गए आपकी आवाज सुने हुए।

2 comments:

निर्मला कपिला said...

बारिश के बाद सड़कों से यहां सोंधी महक नहीं आती
अब तो गांव में भी मिट्टी कम कंक्रीट ज्यादा दिखती हैं।
bahut sundar गली मे जब से कंक्रीट पडी है लोगों का दिल भी पत्थर हो गया है मेरि एक कवित से है बहुत बडिया रचना है

ओम आर्य said...

बहुत हि सुन्दर भव लिये हुये रचना