बिहार में पिछले वर्ष कोसी नदी कयामत बन कर उत्तरी इलाकों में टूट पड़ी थी। तबाही का ये मंजर इसलिए भयावह था क्योंकि कोसी नदी ने अपने प्रवाह का रास्ता बदला था। हर वर्ष बाढ़ को भोगने वाली राज्य की जनता इस बार भी खतरे से जूझ रही है। इस बार भय है कि कहीं बागमती नदी कोसी का रूप धरण नहीं कर ले।
बिहार के सीतामढ़ी जिले के रूनीसैदपुर प्रखंड के तिलक ताजपुर गांव के समीप बागमती नदी का तटबंध टूट जाने से लगभग 200 गांवों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है और हजारों लोग बेघर हो गए हैं।
एक बाढ़ पीड़ित ग्रामीण ने बताया, "हम भूखे हैं। हमारे बच्चे भोजन और दूध के लिए रो रहे हैं लेकिन सरकार की ओर से हमें कुछ नहीं मिल रहा है। तटबंध को टूटे 24 घंटे से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है। "
सीतामढ़ी जिले के एक अधिकारी ने बताया कि एक लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि इस बात की आशंका है कि कई और गांव बाढ़ की चपेट में आ जाएंगे। राष्ट्रीय आपदा राहत बल (एनडीआरएफ) का एक दल रविवार सुबह से राहत कार्यो में जुट गया है।
अधिकारी ने कहा कि एनडीआरएफ का दल शनिवार शाम ही यहां पहुंच गया था लेकिन अंधेरे की वजह से राहत कार्य शुरू नहीं हो सका था। बाढ़ की चपेट में आने से लगभग छह लोगों के डूबने की आशंका व्यक्त की जा रही है लेकिन जिला अधिकारी ने केवल एक महिला की मौत की पुष्टि की है।
माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुछ ही दिनों में बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा करेंगे।
नीतीश कुमार ने शनिवार को वहां एक उच्च स्तरीय जांच दल को भेजने का निर्देश दिया था। जांच दल में जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव, आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव, दोनों विभागों के मंत्री तथा राष्ट्रीय आपदा राहत बल (एनडीआरएफ) के पदाधिकारी शामिल किए गए हैं।
इधर, मुजफ्फरपुर जिले के कटरा प्रखंड में लखनदेई नदी के तटबंध में दरार आ गई है, जिससे मोहनपुर, शहनौली, डुमरी, खंगूरा, धोबौली बकुची आदि गांवों में बाढ़ का पानी फैल गया है। जिलाधिकारी विपिन कुमार ने शनिवार को बताया था कि बकुची कृषि फॉर्म के समीप तटबंध में दरार की मरम्मत कर दी गई है।
उल्लेखनीय है कि गत वर्ष राज्य के आठ जिलों के 417 गांव की करीब 40 लाख आबादी बाढ़ की चपेट में आ गई थी ।वह भी कोई सौ किलोमीटर। पिछले साल नदियों के बहाव का रास्ता बदलना किसी कयामत से कम नहीं था। इसका सीधा-सा मतलब था 100 किलोमीटर के पूरे इलाके का जलमग्न हो जाना, और ऐसा ही कुछ हुआ भी। इस बार हुक्मरानों को फिर से सचेत होने की जरूरत है नहीं तो लोग फिर कहेंगे-
''हम मारे छी मुक्का कपाड़ मे , हमर किस्मत फुटल कोसी धार मे'' । आशंका है कि इस बार कोसी के बदले लोग बागमती कहें।
3 comments:
hamare sath yahi problem hai hum apni galatiyo se kuchh nahin sikhte...
प्रत्येक वर्ष किसी खास तरह की घटना की पुनरावृत्ति .. सरकारी अधिकारियों की पूरी लापरवाही दिखती है .. जब भाग्य भरोसे ही लोगों को जीना पडे .. तो सरकार क्यूं ?
सब रामभरोसे चल रहा है......सरकार तो बस कुर्सीयों पर बैठने के लिए है...
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