कविता से क्लिंटन इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी इसका जिक्र किया है। उन्होंने वर्ष 2003 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा 'लिविंग हिस्ट्री' में भी अनुसइया की कविता को याद किया और एक अध्याय का नाम ही 'साइलेंस इज नॉट स्पोकन हेयर' रख दिया।
सोमवार को विदेश मंत्री के तौर पर जब क्लिंटन दिल्ली विश्वविद्यालय पहुंची तो वहां अनुसूइया भी वहां उपस्थित थीं। क्लिंटन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कन्वेंशन हॉल में अपने भाषण में भी अनुसूइया और उनकी कविता का जिक्र करना नहीं भूला।
वहां उपस्थित बड़ी संख्या में लोगों को संबोधित करते हुए क्लिंटन ने कहा, "वर्ष 1995 में मेरी मुलाकात अनुसइया सेनगुप्ता से हुई। उसने मुझे खुद की लिखी कविता पढ़कर सुनाई। कविता की अंतिम पंक्तियां थीं- कई देशों में कई महिलाएं एक ही भाषा बोलती हैं- मौन की भाषा।"
क्लिंटन ने कहा कि 14 वर्ष पूर्व अनुसइया एक छात्रा थीं और आज वह महिलाओं के अधिकारों के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने कहा, "वह आज भी चुप नहीं है।"
मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी कविता को आप भी पढ़ें, मैं इसे मौन की कविता कहता हूं-
Silence
Too many women in too many countries speak the same language of silence.
My grandmother was always silent,
always aggrieved Only her husband had the cosmic right (or so it was said) to speak and be heard.
They say it is different now. (After all, I am always vocal and my grandmother thinks I talk too much)
But sometimes I wonder.
When a woman shares her thoughts,
as some women do, graciously, it is allowed.
When a woman fights for power, as all women would like to,
quietly or loudly, it is questioned
And yet, there must be freedom - if we are to speak And yes,
there must be power - if we are to be heard
And when we have both (freedom and power)
let us now be understood.
We seek only to give words to those who cannot speak (too many women in too many countries)
I seek to forget the sorrows of my grandmother's silence.
1 comment:
आज पहली बार अनुभव पर आया और तय किया कि इधर से अब बराबर गुजरना होगा।
पंकज नारायण
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