Sunday, June 14, 2009

रविवार को महंगाई पर अविनाश की मैथिली कविता- पुरान गीत

रविवार को ऑफिस में अपने हिस्से का काम पूरा करने के बाद कुछ मैथिली ब्लॉगों का चक्कर लगा रहा था। कई महीने बाद अविनाश के मिथिला मिहिर पर दस्तक दी। यहां उनकी कविता पुरान गीत जिसे कई बार पढ़ चुक हूं, फिर से पढ़ने लगा। आप भी पढिए।


" दस पाइ मे रामदीन के आलूकट, दू टाका मे लाइटहाउस के फ्रंट टिकट

एमएलएकेडमीक गेट पर मात्र चवन्‍नी मे भेट जाइत छल गणेशीक भूजा

पांच पाइ मे यादवजी के झोरा सं बहराइत छल पाचक

अइ महगी के जमाना मे स्‍वादक ई पुरान गीत तहिना अछि

जेना ऑल इंडिया रेडिया के उर्दू सर्विस दुफरिया मे गबैत अछि

मेरे पिया गये रंगून वहां से किया है टेलीफून तुम्‍हारी याद सताती है।"

यदि आप मैथिली नहीं जानते हैं तो उसका सार यह है-


दस पैसे में रामदीन का आलकूट, दो रूपये में लाइटहाउस का फ्रंट टिकट
एमएलएकेडमीक के गेट पर मात्र चवन्नी में मिल जाता था गणेशी का भूजा
पांच पैसे में यादवजी के झोले से निकलता था पाचक
इस महंगाई में ये गीत वैसे ही हैं
जैसे भरी दुपहरी में ऑल इंडिया रेडिया के उर्दू सर्विस मे बजता है
मेरे पिया गये रंगून वहां से किया है टेलीफून तुम्‍हारी याद सताती है।

1 comment:

vinod kumar mishra said...

sarahniya prayas
jay ho!