फिल्म में अनुराग की नयी शैली, आक्रामक रूझान, सशक्त कथ्य और नयी भाषा को आप जान सकते हैं। व्यक्तिगत तौर पर इसने तो मुझे मोह लिया। फिल्म के डॉयलॉग महत्वपूर्ण है, उसे समझने की आवश्यकता है। यह राजस्थान की पृष्ठभूमि पर बनी राजनीतिक फिल्म है लेकिन हर दर्शक को इससे अपनापा हो सकता है।
फिल्म में सबसे ताकतवर किरदार मुझे दुकी बना (के। के। मेनन) लगा। वह अतीत के गौरव को लौटाने का झांसा देकर आजादी के बाद लोकतंत्र की राह पर चल रहे देश में फासीवाद लाना चाहता है-राजपूताना के तौर पर। अनुराग ने इस किरदार को बेलाग ढंग से पेश किया है और के।के।मेनन भी अपने किरदार के साथ जंच रहे हैं। कितना अलग लगता है मेनन को इस फिल्म में देखकर। सशक्त अभिनय करने वाले मेनन की अन्य फिल्म हजारों ख्वाहिशें ऐसी की याद आ जाती है। दोनों फिल्मों में उनका किरदार एक दूसरे से साफ अलग।
पियूष मिश्रा के गीत भी बेहद गंभीर और टच करने वाले हैं मसलन-जैसे दूर देश के टावर में घुस गयो रे ऐरोप्लेन॥। आपको रामधारी सिंह दिनकर की कविता भी यहां सुनने को मिलेगी, तबले के थाप पर आप सुनेंगे- जीवन जय या मरण होगा....।
3 comments:
ये अच्छी बात नही है कि अकेले अकेले ही फिल्म देखने चले जाए।
सौ फीसदी सहमत
क्या कहें-हम तो देख चुके हैं. :)
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