Tuesday, July 29, 2008

राहुल गांधी की ‘कलावती’ के दिन फिरेंगे! (शुक्रिया पाठक साहब, इस नेक काम के लिए )

शुक्रिया पाठक साहब, इस नेक काम के लिए
यही हैं कलावती (फोटो मे )


संसद में विश्वास मत पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने महाराष्ट्र की जिस कृषक विधवा और नौ बच्चों की मां कलावती का जिक्र किया था, उसे अग्रणी गैर सरकारी संगठन 'सुलभ इंटरनेशनल' ने गोद लेने की घोषणा की है।
सार्वजनिक स्वच्छता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करने वाली संस्था ने कलावती को 25 हजार रुपये मासिक देने का निर्णय लिया है। इससे महाराष्ट्र के यवतमाल जिले की महिला को तीन वर्ष पहले अपने किसान पति द्वारा की गई आत्महत्या से उत्पन्न दुखद परिस्थितियों से उबरने में सहायता मिलेगी।
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने कहा कि,'कलावती के परिवार को गोद लेने का निर्णय सोच समझकर किया गया है।' गौरतलब है कि कलावती ने अपने परिवार की जरूरतें पूरी करने में असफल रहने पर आत्महत्या की धमकी दी थी।
पाठक ने कहा कि अगले 20 साल तक मिलने वाली 25 हजार रुपये मासिक की रकम से वह अपने सात बेटियों और दो बेटों की परवरिश कर सकेगी।
लोकसभा में 22 जुलाई को विश्वासमत चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र की शाशिकला और कलावती नामक दो महिलाओं का जिक्र किया था।
राहुल गांधी ने कहा था कि उनके घरों में बिजली नहीं है। उन्होंने इसको देश खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की कमी और गरीबी उन्मूलन से जोड़ते हुए परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता बताई थी।
कलावती के पास केवल नौ एकड़ जमीन है जिसमें वह कपास और सोयाबीन उगाकर अपने नौ बच्चों का खर्च चलाती है।
विदर्भ क्षेत्र लंबे समय से सूखे की चपेट में है। कलावती और उसके समान अन्य महिलाएं कृषि से इतना अधिक नहीं अर्जित कर पाती हैं कि अपने परिवार का पालन कर सकें।

4 comments:

सुशील छौक्कर said...

यह खबर सुखद है। पर पता नही कितनी और कलावती है?

राज भाटिय़ा said...

एक कला वती की कला से बाबु कया वोट ले कर जीत जाओ गे,इन्हे यहा तक पहुचाने वाले भी तो आप लोग ही हे,यह २५ हजार अपनी जेब से देते तो मानते,किस हक से दे रहे हे यह पेसे,आप कोन से मन्त्री हे, किस पद पर हे, देने से पहले यह भी बताओ,

Udan Tashtari said...

एक ही सही, मगर सुखद खबर है. वैसे यह किसी समस्या का समाधान नहीं है जिसका कलावती मात्र प्रतीक है.

Gajendra said...

समाधान तो नहीं पर शुरुआत तो है। पर संवेदनाशीलता भाषण तथा काममे इतने दिनों पर क्यों है आती?