Saturday, July 26, 2008

जादूपिटिया और डोकरा लोककला


रांची क्या आपने कभी किसी कलाओं में निपुण कलाकारों को अपने नाम के पीछे टाइटल की जगह कला का नाम देखा या सुना है? शायद आपका उत्तर ना हो परंतु झारखंड में विलुप्त हो रही प्रसिद्ध लोककला जादूपिटिया और डोकरा से जुड़े कलाकार आज भी अपने नाम के पीछे अपनी कला का नाम देते हैं। इन्हें अपनी जाति की नहीं बल्कि लोककला की परवाह है।


शंभु जादूपिटिया बताते हैं कि कला, जाति से बड़ी चीज है। आज हमारी पहचान जाति से नहीं कला से होती है। वर्तमान समय में जादूपिटिया और डोकरा कला मुख्य रूप से संथाल परगना के क्षेत्रों में ही सिमट कर रह गयी है। माना जाता है कि यह कला बिहार की मधुबनी पेंटिंग कला सहित अन्य भारतीय कलाओं से किसी तरह कम नहीं।

जादूपिटिया जहां चित्रकला है वहीं डोकरा पीतल से गहने बनाने की कला है। डुबरी जादूपिटिया ने बताया कि डोकरा पीतल के गहने बनाने की कला है। उन्होंने बताया कि पहले पीतल के आभूषणों पर महीन चित्रकारी कर फिर आभूषणों को आग की भट्ठी में पकाया जाता है। इसके बाद इन आभूषणों की अलग पहचान बन जाती है।

उधर, जादूपिटिया चित्रकला में आज भी कलाकार प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करते हैं। इन कलाकारों द्वारा बनाये गये अधिकांश चित्र काल्पनिक और मरने के बाद की मनुष्य की स्थिति को दर्शाता है। जादूपिटिया के कलाकार नदियों के किनारे पड़े रंग-बिरंगे पत्थरों को घिस कर रंग बनाते हैं और फिर इन्हीं रंगों द्वारा कागजों पर चित्र बना डालते हैं।

भगवान को मानने वाले इन कलाकारों को यह अफसोस है कि झारखंड अलग होने के बावजूद जादूपिटिया और डोकरा कलाओं को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा। जगेश्वर जादूपिटिया का कहना है कि पूर्वजों द्वारा विरासत में मिली इन कलाओं के कद्रदान अब कहां? अब तो हम जैसे कलाकारों को इन कलाओं के जरिये पेट भरना भी मुश्किल है।

इन लोककलाओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए काम कर रही सामाजिक संस्था आर्ट एंड आर्टिस्ट सोसाइटी की सचिव संध्या का कहना है कि इस लोककला को जीवित रखना झारखंड की संस्कृति को जीवित रखने जैसी है। उन्होंने कहा कि जल्द ही इन चित्रकलाओं की प्रदर्शनी झारखंड, बिहार व दिल्ली में लगायी जाएगी।

4 comments:

Rajesh Roshan said...

आपका बहुत आभार जो आपने जादुपिटिया के बारे में यहाँ जानकारी दी.... सच में इस कला को बचाने की जरुरत है

आशीष कुमार 'अंशु' said...

गिरिन्द्र शायद तुम झारखंड़ के जादूपेटिया कला की बात कर रहे हो.
इस कला से मेरा पहला परिचय सोपान संवाददाता अवधेश मल्लिक ने कराया था .
इस विषय तुमने लिखा आभार.

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा जादूपेटिया पर जानकारी पा कर..आभार.

Anonymous said...

जादूपेटिया की एक छोटी सी डिबिया मेरे पास भी भिजवाइयेगा। हम भी करके देखेंगे।
- अविनाश वाचस्‍पति