Saturday, April 12, 2008

एरिका स्मिथ की जमीन पर नहीं बना म्यूजियम




मिथिला पेंटिंग से अभिभूत हो कर जर्मनी की एरिका स्मिथ आज से करीब तीन दशक पूर्व मधुबनी के जितवारपुर गांव आई तो यहीं की हो कर रह गयीं। उन्होंने यहां साढ़े बाहर कट्ठा जमीन भी खरीदी और उस पर भवन निर्माण आरंभ करवाया, पर कार्य संपन्न होने से पहले ही उनका निधन हो गया।


ग्रामीणों के अनुसार एरिका ने यह जमीन यहां के कलाकारों द्वारा बनायी गयी मिथिला पेंटिंग से होने वाली आय के मुनाफा से खरीदी थी। कहते हैं कि वह इस जमीन पर म्यूजियम और गेस्ट हाउस बनवाना चाहती थीं। उनके निधन के बाद भवन तो बना पर उसमें म्यूजियम की स्थापना नहीं की जा सकी।




एरिका की जमीन पर बने भवन को हस्तकला आश्रम का नाम दे दिया गया है जिसका उद्घाटन दरभंगा प्रमंडल के आयुक्त वी। जयशंकर ने 2.10.1991 को किया था। बगल में एक और हालनुमा भवन है। इनका उपयोग बारातियों को ठहराने आदि के लिए होता है। अन्य दिनों यह यूं ही पड़ा रहता है। जमीन की घेराबंदी भी नहीं की गयी है। इसे म्यूजियम के रूप में देखने का सपना संजोने वाले इससे दुखी हैं।




कलाकारों व कला प्रेमियों को इस बात की पीड़ा है कि मिथिला पेंटिंग की नामचीन हस्तियों की कला विदेशों के संग्रहालय में तो हैं पर यहां अपनी मिट्टी पर ऐसा कुछ नहीं है जहां लोग उसे सहजता से देख-परख सकें। जितवारपुर में तो राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिथिला पेंटिंग के माध्यम से परचम लहराने वाले कलाकर तो हैं ही, आसपास के इलाकों में भी नामचीन कलाकर हैं।




रसीदपुर की पद्मश्री गंगा देवी, भूषण लाल कर्ण, लहेरियागंज के सीवन पासवान, रांटी की महासुंदरी देवी, कर्पूरी देवी आदि की कला को भी म्यूजियम में स्थान दिया जा सकता है। पद्मश्री सीता देवी के कलाकार पौत्र मिथिलेश अपनी दादी को राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर पुरस्कारों में मिले मेडल, शील्ड आदि दिखाते हुए कहते हैं कि बाहर से आने वाले लोगों को इसे देखने के लिए उनके आवास तक आना पड़ता है।




यदि म्यूजियम होता तो इसे वहां सुरक्षित रखा जा सकता था और लोगों के लिए इसका अवलोकन भी सहज होता। उन्हें इस बात का अफसोस है कि दादी को निधनोपरांत जब शिल्प गुरु आवार्ड प्रदान किया गया तो उसमें मिलने वाली नकद ७.५ लाख की राशि नहीं दी गयी। यदि यह मिली होती तो कलाकारों के उत्थान या म्यूजियम निर्माण की दिशा में पहल की जा सकती थी। वे कहते हैं कि सरकार यदि इस राशि का खुद यहां उपयोग करती तो भी हर्ज नहीं था, पर कुछ भी नहीं हो सका। इसी तरह लोगों को यह बात भी साल रही है कि गांव में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं है जो इधर से गुजरने वालों को एक नजर में इस कला ग्राम की महत्ता से परिचित करा दे या फिर मिथिला पेंटिंग को विश्व पटल पर स्थापित करने वाले भास्कर कुलकर्णी व एरिका स्मिथ की याद दिला दे।


साभार जागरण डॉट कॉम

2 comments:

Manas Path said...

ठीक से देखभाल हो इ़स विरासत की.

Amit Kumar Singh said...

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